Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
ककककककककक
चमरेन्द्र का शकेन्द्र पर आक्रमण और पलायन FFFFFFFFFFFFFF
थे । तत्काल के उत्पन्न हुए चमरेन्द्र ने अपने अवधिज्ञान के उपयोग से भगवान् महावीर को सुंसुमारपुर के अशोकवन में भिक्षु महाप्रतिमा धारण किये हुए देखा । उसे विश्वास हो गया कि इस महाशक्ति का आश्रय ले कर, सौधर्म-स्वर्ग जाना और अपना मनोरथ सफल करना उचित होगा ।
चमरेन्द्र अपनी शय्या से उठा, देवदूष्य पहिना और उपपात सभा से पूर्व की ओर चल कर शस्त्रागार में पहुँचा और 'परिघ' शस्त्र - रत्न ले कर अकेला ही शक्रेन्द्र को पददलित करने के लिये चल दिया । उसने उत्तरवैक्रिय से संख्येय योजन ऊँचा रूप बनाया और शीघ्रगति से सुंपुमारपुर के अशोकवन में, भगवान् के निकट आया । वन्दन-नमस्कार किया और इस प्रकार बोला-
२०५
'भगवन् ! मैं आपका आश्रय ले कर शक्रेन्द्र को पददलित करने के लिए सौधर्म स्वर्ग जा रहा हूँ । मुझे आपका शरण हो ।
"1
इस प्रकार निवेदन कर के चमरेन्द्र एक ओर गया और वैक्रिय समुद्घात कर के एक लाख योजन प्रमाण महाभयानक एवं विकराल रूप बनाया और घोर गर्जना करता हुआ वह ऊपर जाने लगा । उसके घोर रूप, भयंकर गर्जना और अनेक प्रकार के उत्पात से सभी जीव भयभीत हो गए। वह कहीं बिजलियाँ गिराता कहीं धूलिवर्षा करता और कहीं अन्धकार करता हुआ आगे बढ़ता गया । मार्ग के व्यन्तर देवों को त्रासित करता, ज्योतिषियों को इधर-उधर हटाता और परिघ रत्न को घुमाता हुआ वह सौधर्म स्वर्ग की सुधर्मा - सभा में पहुँचा । उसने हुंकार करते हुए इन्द्रकील पर अपने परिघ - रत्न से तीन प्रहार किये और क्रोधपूर्वक बोला ; --
"कहाँ है वह देवेन्द्र देवराज शक्र ? कहाँ है, उसके चौरासी हजार सामानिकं देव ? उसके तीन लाख छत्तीस हजार आत्म-रक्षक देव कहाँ चले गए ? और वे करोड़ों अप्सराएँ कहाँ है ? मैं उन सब का हनन करूँगा । अप्सराएँ सब मेरे आधीन हो जावें । शेष सब को मैं समाप्त कर दूँगा ।"
देवेन्द्र शक्र ने चमरेन्द्र के अप्रिय शब्द सुने और अशिष्टता देखी, तो उसे रोष आ गया । वह क्रोध पूर्वक बोला ;
"असुरेन्द्र चमर ! तेरा दुर्भाग्य ही तुझे यहाँ ले आया है । परन्तु अब तेरा अन्त आ गया है । इस अधमाचरण का फल तुझे भोगना ही पड़ेगा ।”
Jain Education International
इस प्रकार कह कर शक्रेन्द्र ने अपने पास रखा हुआ वज्र उठाया और सिंहासन पर बैठे हुए ही चमरेन्द्र पर फेंका। उस वज्र में से हजारों चिनगारियाँ, ज्वालाएँ, उल्काएँ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org