Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
-भाग ३
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जो इच्छा हो, वह मुझसे माँग लें। यदि आप चाहें, तो मैं आपको स्वर्ग के सम्पूर्ण सुख प्रदान कर दूं । मैं आपको मुक्ति भी प्रदान कर सकता हूँ । कहिये, क्या दूँ आपको ? संसार का साम्राज्य चाहिये, तो वह भी दे सकता हूँ ।"
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इस प्रकार का लोभ भी भगवान् को डिगा नहीं सका ।
२० अब संगम ने काम-वर्द्धक प्रसंग उपस्थित किया। सारा वातावरण मोहक बना दिया। सारा वन- प्रदेश सुगन्धित पुष्पों से सुवासित बनाया और सभी प्रकार की मोहोन्मत्त बना देने वाली सामग्री के साथ देवांगनाओं को उपस्थित की । वे भगवान के सम्मुख आ कर नृत्य करने लगी । संगीतादि अनेक प्रकार से प्रभु को रिझाने की चेष्टा करने लगी । हाव-भाव, अंगचेष्टा और मधुर वचनादि सभी प्रकार के प्रयत्न वे कर चुकी । परंतु भगवान् को किञ्चित् मात्र भी विचलित नहीं कर सकी ।
इस प्रकार एक ही रात में बीस प्रकार के महान् एवं घोर उपसर्ग दिये । परन्तु उसके सभी प्रयत्न निष्फल हुए और भगवान् अपनी साधना में पूर्ण सफल रहे ।
संगम पराजित हो कर भी दुःख देता रहा
अब संगम के सामने एक उलझन खड़ी हो गई । वह एक मनुष्य से पराजित हो कर इन्द्र-सभा में कैसे जाय ? हँसी का पात्र बन कर सभा में उपस्थित होना उसे स्वीकार नहीं था । उसने सोचा- ' कुछ भी हो, यदि यह अपने निश्चय से नहीं हटता, तो में क्यों हटू ? क्या एक रात में ही परीक्षा पूरी हो गई ? नहीं, यह तो पहले दिन की परीक्षा हुई । अब जम कर दीर्घकाल तक प्रयत्न करना होगा ।'
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एक बार भगवान् तोसली गाँव के उद्यान में ध्यानस्थ थे। संगम साधु बन कर उस गाँव में सेंध लगाने लगा । लोगों ने उसे पकड़ लिया और मारा, तो उसने कहा- मैं निर्दोष हूँ । मेरे गुरु के आदेश से में चोरी करने आया हूँ ।" लोगों ने पूछा--" कहाँ है तेरा ?" उसने कहा-गुरु 'उद्यान में ध्यान कर रहे हैं ।" लोग उद्यान में पहुँचे और भगवान् को पकड़ कर रस्सियों से बाँधा, फिर गाँव में ले जाने लगे। उस समय महाभूतल नामक एन्द्रजालिक ने भगवान् को पहिचान लिया। उसने भगवान् को पहले कुण्ड ग्राम में देखा था । उसने लोगों को भगवान् का परिचय दिया और बन्धन - मुक्त कराया। लोगों ने प्रभु से क्षमा-याचना की। उन्होंने झूठा कलंक लगाने वाले उस नकली साधु-संगम की खोज की, परन्तु वह अन्तर्धान हो चुका था ।
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