Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि
भान हुआ । उसने अपनी उष्ण-तेजोलेश्या अपने में समा ली और बोला- " भगवन् ! मैं जान गया कि आप महान् शक्तिशाली हैं (और यह आपका शिष्य है । आपने अपनी विशिष्ट शक्ति से उसे बचा लिया ) " ।
वे शिकायन ने भगवान् से क्षमा याचना की । वेशिकायन के शब्दों से गोशालक कुछ भी नहीं समझ सका । उसने भगवान् से पूछा --
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भगवन् ! यूकाओं के शय्यातर ने आपसे यह क्यों कहा कि- “हे भगवन्! मैं जान गया हूँ, मैं जान गया हूँ ?"
भगवान् ने कहा; --
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'गोशालक ! तूने बालतपस्वी वेशिकायन को देख कर मेरा साथ छोड़ा और पीछा शिकायन की ओर जा कर उससे कहा--"तू जूंओं का घर है, जूंओं का घर है ।" तेरे बार-बार कहने पर वह बाल-तपस्वी क्रोधित हुआ और आतापना - भूमि से नीचे उतर कर तुझे मार डालने के लिये तेजस्समुद्घात कर के तेजोलेश्या छोड़ी। मैं उस तपस्वी का अभिप्राय जान गया था । उसके तेजोलेश्या छोड़ते ही मैंने तेरा जीवन बचाने के लिये शीतलेश्या छोड़ कर उसकी तेजोलेश्या लौटा दी । तेरी रक्षा हो गई । अपनी अमोघशक्ति को व्यर्थ जाते देख कर वैशिकायन समझ गया कि यह मेरे द्वारा मोघ हुई है । इसी से उसने वे शब्द कहे । भगवान् का कथन सुन कर गोशालक भयभीत हुआ। वह अपने को सद्भागी मानने लगा कि मैं ऐसे महान् गुरु का शिष्य हूँ कि जिसके कारण मेरी जीवनरक्षा हो गई । अन्यथा आज मैं भस्म हो जाता ।
वास्तव में यह गोशालक का सद्भाग्य ही था कि भगवान् उसके रक्षक बने । यदि पूर्व के समान ध्यानमग्न होते, तो उसकी रक्षा कैसे हो सकती थी ?
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तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि
गोशालक ने भगवान् से पूछा -- " भगवन् ! संक्षिप्त - विपुल तेजोलेश्या प्राप्त करने को विधि क्या है ?"
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भगवान् ने कहा- 'बन्द की हुई मुट्ठी में जितने उड़द के बाकुले आवे, उन्हें ख' कर और चुल्लु में जितना पानी आवे उतना ही पी कर, निरन्तर बेले-बेले की तपस्या करे साथ ही सूर्य के सम्मुख खड़ा रह कर ऊँचे हाथ उठा कर आतापना लेवे । इस प्रकार छह मास पर्यंत साधना करने से तेजोलेश्या शक्ति प्रकट होती है ।"
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