Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तीर्थंकर चरित्र-भाग ३
किककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
हो गया कि यह प्रभाव मेरे गुरुदेव का ही है । उनके समान प्रभावशाली कोई दूसग है ही नहीं । गुरुदेव यहीं होंगे ।' खोज करते हुए उसने भगवान् को कोल्लाक सन्निवेश के बाहर एकांत स्थान पर रहे हुए देखा । गोशालक ने प्रसन्न हो कर प्रभु को वन्दननमस्कार किया और बोला--
"भगवन् ! मैने तो पहले से ही आपको अपना गुरु मान लिया था, परन्तु आपने मुझे स्वीकार नहीं किया। उस समय मुझ में जो कमी थी, वह मैने दूर कर दी। मैने अपना पूर्व का जीवन ही त्याग दिया है और सर्वथा निःसंग हो कर आपका शिष्यत्व प्राप्त करने आया हूँ। अब मैं आपके आधीन ही रहूँगा। अब मुझे स्वीकार कीजिये-प्रभु ! आप मेरे गुरु हैं और मैं आपका शिष्य हूँ।"
भगवान् ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की * |
गोशालक की पिटाई
कोल्लाक ग्राम से विहार कर के प्रभु स्वर्णखल की ओर जाने लगे। मार्ग में कुछ ग्वाले मिल कर खीर बना रहे थे। उसे देख कर गोशालक के मुंह में पानी आ गया। उसे जोर की भूख लगी थी। उसने प्रभु से निवेदन किया--
"भगवन् ! मुझे भूख लगी है । वे ग्वाले खीर पका रहे हैं । चलिये, वहाँ हम भी खीर का भोजन करेंगे।" इसके उत्तर में सिद्धार्थ व्यन्तर ने कहा--
"ग्वाले निष्फल होंगे। उनकी खीर बनेगी ही नहीं।" गोशालक ग्वालों के पास पहुंचा और बोला--
__ "मेरे गुरु त्रिकालज्ञानी है । उन्होंने कहा कि तुम्हारी खीर पकेगी नहीं और हंडिया फूट जायगी ।"
ग्वाले डरे । उन्होंने बाँस की खपच्चियों और रस्सियों से इंडिया बाँधी । परन्तु चावल अधिक मात्रा में होने के कारण फूलने पर हंडी फूट गई । ग्वालों ने तो हंडी के
• इस स्थान पर भगवती सूत्र श. १५ के मूलपाठ में उल्लेख है कि-भगवान् ने गौतमस्वाजी से इस घटना का वर्णन करते हुए कहा कि-"तएणं अहं गोयमा! गोशालस्स मंखलीपुत्तस्स एयमलैंपडिसुणेमि।" अर्थात्-मैने गोशालक की यह बात सुनी । इस ‘पडिसुणेमि' शब्द का अर्थ टीकाकार ने 'स्वीकार करना' किया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org