Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र भाग ३
था, परन्तु उसका विशेष समय धर्मसाधना में ही जाता था और वह साधु-दीक्षा लेने की भावना रखता था । अतएव यह पापाचार उसकी दृष्टि में नहीं आ सका । किन्तु कमठ को पत्नी वरुणा से यह दुराचार छुपा नहीं रह सका। उसने मरुभूति से कहा । पहले तो मरुभूति ने-भाई के प्रति विश्वास होने के कारण-भाभी की बात नहीं मानी। परन्तु आग्रह पूर्वक बारबार कहने में उसने स्वयं अपनी आँखों से देखने का निर्णय किया । घर आ कर उसने भाई से, बाहर-गाँव जाने का कह कर चल दिया । ओर संध्या समय वेश और बोली पलट कर घर आया और अपने को विदेशी व्यापारी बता कर रातभर रहने के लिये स्थान माँगा। कमठ ने उसे एक कमरे में ठहरा दिया। मरुभूति के बाहर चले जाने से कम प्रसन्न हुआ। अब वह निःशंक हो कर वसुन्धरा के साथ भोग करने लगा, जिसे मरुभूति ने स्वयं एक जाली में से देख लिया। वह तत्काल क्रोधित हो उठा, किन्तु लोक-लाज के विचार ने उसे मौन ही रहने दिया । उसमें धधकती हुई क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। प्रातःकाल होने के बाद वह महाराजा के पास गया और ज्येष्ठ-भ्राता के दुराचार की बात कह सुनाई । महाराज स्वयं दुराचार के शत्रु थे । उन्होने तत्काल कमठ को पकड़ मँगाया और उस पर गुरुतर अपराध का आरोप लगाया । वह अपने को निदोष प्रमाणित नहीं कर सका । नरेश ने निर्णय दिया-“इसका काला मुंह करो, गधे पर बिठाओ और नगर में धुमाते हुए जोर-जोर से कहो कि "यह दुराचारी है । इसने छोटे भाई की पत्नी के साथ व्यभिचार किया है।".... , .
. — आरक्षकों ने उसका मुंह काला किया। उसे विचित्र वेश में गधे पर बिठा कर नगर में घुमाया और उनके महापाप को प्रकट करते हुए नगर से बाहर निकाल दिया । कमठ के लिये यह दण्ड मृत्युदण्ड से भी अधिक दुःखदायक हुआ। वह बन में चला गया। उसके हृदय को गम्भीर आघात लगा था । वह संसार से विरका हो गया और एक सन्यासी के पास दीक्षित हो कर अज्ञान तप करने लगा। इधर मरुभूति का कोप शान्त हुआ ता उसे भाई की घोर कदर्थना पर अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ। वह सोचने लगा कि मने भाई का दुराचार राजा को वह कर बहुत बुरा किया ।' वह भाई से क्षमा मांगने के लिये वन में जाने को तत्पर हुआ। उसने राजा से आज्ञा माँगी। राजा ने उसे समझाया कि वह उसके पास नहीं जाय । यदि गया, तो उसका जीवन संकट में पड़ सकता है । उसके मन में तुम्हारे प्रति उग्रतम वैरभाव होगा ।' किन्तु वह नहीं माना और वन में भाई को खोज कर , उसके चरणों में गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा । मरुभूति को देखते ही कमठ का क्रोध भड़क उठा । उसने एक बड़ा, पत्थर उठा कर मरुभूति के मस्तक पर दे मारा ।
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