Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र भाग ३ Databdhdbobdesobtbsasebidadshuhshobchebstershdedeshestsksbstachetactacleseddhdesertedeshockdoshdesbdashreshthdasbodhita
क "स्त्री मात्र कुपात्र है । सरिता के समान स्त्री की गति अधोगामिनी होती है। वह कभी सदाचारिणी हो ही नहीं सकती । इसलिये में स्त्री से स्नेह कर ही नहीं सकता।" .
इसके उत्तर में युवती ने लिखा; --
" संसार में सभी स्त्रियाँ समान नहीं होती। बुरी भी होती है और अच्छी भी । आप को यदि कोई बुरी स्त्री दिखाई दी हो, तो अच्छा स्त्रा भा देखने में आई होगी। क्या पुरुष सभी अच्छे ही होते हैं, बुरा कोई हाता ही नहीं ? अपने एकांगी निर्णय पर आप पुनः विचार कीजिये । आपको अच्छी स्त्रियाँ भी दिखाई देगी।"
इस पत्र ने सागरदत्त की आँखे खोल दी। उसे ग्वालिन का सेवा का अनुभव था हो । सुन्दरी उसे सुशील बुद्धिमती और अनुकूल लगी। उसने उसके साथ लग्न कर लिये और सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा।
कुछ समय बाद सागरदत्त का सुसरा और साला व्यापारार्थ 'पाटलापथ' नगर गये और सागरदत्त यहीं व्यापार करने लगा । कालान्तर में वह व्यापारार्थ विदेश गया। किंतु उसके वाहन समद्र में डूब गये । इस प्रकार सात बार गया और सातों बार उसके जहाज डूबे । वह निर्धन हो गया। लोग उसे 'पुण्यहीन' कह कर हँसी करने लगे। कितु उसने अपना लक्ष्य नहीं छोड़ा । भटकते हुए उसने एक कुएँ में से पानी खिंचते हुए एक लड़के को देखा । उस लड़के की डोल में सात बार पानी नहीं आया, परन्तु आठवीं बार पानी आ गया। इससे वह उत्साहित हुआ और आठवीं बार फिर जहाजों में माल भर कर चल निकला। वह सिंहल द्वीप जाना चाहता था, परन्तु वायु अनुकूलता नहीं होने से रत्नद्वीप जा पहुँचा । वहाँ अपना सब माल बेच कर रत्न लिये और अपने घर की ओर लौटा । बहुमूल्य रत्नों के लोभ में जलयान के संचालकों ने उसे समुद्र में गिरा दिया। दैवयोग से पहिले के टूट कर डूबे हुए एक जहाज का पटिया उसे मिल गया। उसके सहारे तिरता हुआ वह पाटलापथ पहुँचा । नगर में उसके श्वसुर उसे मिल गये । वह उनके यहाँ गया और अपनी दुर्दशा का कारण बताया । श्वशुर ने कहा-"वह जहाज ताम्रलिप्ति नहीं जायगा, क्योंकि वहाँ तुम्हारे सम्बन्धियों का भय उन्हें रोकेगा। इस लिये वह यहीं आएगा।" ससुर ने वहाँ के नरेश से जहाजियों की विश्वासघातकता बता कर उन्हें पकड़ने और सागरदत्त को उसका धन दिलाने की प्रार्थना की । राजाने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर के बन्दर के अधिकारी को आदेश दिया। सागरदत्त ने यान चालकों की पहिचान और माल का विवरण बतला दिया । ज्यों ही यान वहाँ पहुँचा, सभी खलासी पकड़ लिये गये । जब सागरदत्त उनके संमुख आया, तो वे सब भयभीत हो गो। उन्होंने
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