Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र-भाग ३
प्रभु क्या कर रहे हैं।" अवधिज्ञान का उपयोग लगाया तो चरवाहे की धृष्ठता देख कर उसे वहीं स्तंभित कर दिया और शीघ्र ही वहाँ चल कर आया। शकेन्द्र ने चरवाहे से कहा-"अरे पापी ! यह क्या कर रहा है ? तू नहीं जानता कि ये महाराजा सिद्धार्थ के पुत्र राजकुमार वर्धमान हैं और राजपाट छोड़ कर त्यागी महात्मा हो गये हैं । क्या यं . महापुरुष तेरे बैल चुराएँगे? चल हट यहाँ से ।" देवेन्द्र ने प्रभु की प्रदक्षिणा कर के वन्दना की और विनयपूर्वक बोले;--
__ "भगवन् ! आपको बारह वर्ष पर्यंत उपसर्ग होते रहेंगे और अनेक असह्य कष्ट होंगे । इसलिये मैं आपके साथ रह कर सेवा करना चाहता हूँ।"
__"नहीं देवराज ! अरिहंत किसी दूसरे की सहायता नहीं चाहते । जो जिनेश्वर होते है, वे अपने वीर्य से ही कर्मों का क्षय कर के केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त करते हैं"प्रभु ने कहा।
भगवान् की बात सुन कर इन्द्र ने सिद्धार्थ नाम के व्यंतर से यह भगवान् की मौसी का पुत्र बालतपस्या से व्यंतर देव हुआ था-कहा-"तुम प्रभु के साथ रहना और यदि कोई भगवान् को कष्ट देने लगे, तो तुम उसका निवारण करना।" इतना कह कर इन्द्र भगवान् की वन्दना कर के स्वस्थान गया और सिद्धार्थ व्यंतर भगवान् की सेवा में रहा।
दूसरे दिन भगवान् ने वहाँ से विहार किया ओर कोल्लाक सन्निवेश में बहुल ब्राह्मण के यहाँ परमान्न (क्षीर) से, दीक्षा के पूर्व लिये हुए बेलें के तप का पारणा किया। प्रभु के पारणे की देवों ने 'अहोदानमहोदानम्' का उद्घोष कर प्रशंसा की और पाँच दिव्यों की वर्षा की।
दीक्षोत्सव के समय भगवान् के शरीर पर चन्दनादि सुगन्धित द्रव्यों का विलेपन किया था। उनकी सुगन्ध से आकर्षित हो कर, भ्रमर आ कर चार मास तक प्रभु को डसते रहे । युवकगण आ कर भगवान् से उन सुगंधी द्रव्यों का परिचय एवं प्राप्त करने की विधि पूछने लगे और भगवान् के उत्कृष्ट रूप-यौवन पर मोहित हो कर युवतियाँ भोगयाचना कर अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्ग करने लगी । इस प्रकार प्रव्रज्या धारण करने के दिन से ही उपसर्गों की परम्परा चालू हो गई।
परम्परा चालू हो गई। इस चरित्र का और उपसर्गादि का विशेष वर्णन ग्रन्थ में उपलब्ध है। श्री आचारांगादि सूत्रों में इनका वर्णग नहीं है और कल्पसूत्र में भी नहीं है। आचारांग आदि में संक्षेप में उल्लेख है। चरित्र का विशेष भाग ग्रन्थ से ही लिया गया है।
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