Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१६४
तीर्थङ्कर चरित्र--भाग ३
कंकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर
विदेश गया हुआ था । वह बहुत काल व्यतीत होने के बाद अचानक ही घर आया। इस खुशी में नागसेन ने उत्सव किया और सगे-सम्बन्धियों को आमन्त्रित किया था। उसी दिन भगवान् नागसेन के यहाँ पधारे । भगवान् को अपने घर आते देख कर नागसेन हर्षित हुआ और भक्तिपूर्वक क्षर बहा कर पारणा कराया । देवों ने पंच दिव्य की वृ.ष्ट कर के नागसेन के दान की प्रशंसा की। पारणा कर के भगवान् श्वेताम्बिका नगरी पधारे। प्रदेशो राजा भगवान् को वन्दना करने आया। श्वेताम्बिका से भगवान् ने सुरभिपुर की ओर विहार किया+।
कंबल और संबल का वृत्तांत मथुरा नगरी में 'जिनदास' नाम का एक श्रावक था। 'साधुदासी' उसकी सहचरी
+ यहाँ ग्रन्थकार भगवान को नावा में बैठ कर नदी पार करने का उल्लेख करते हैं । परन्तु भगवान् ने कभी नौका द्वारा नदी पार की हो अथवा पांवों से जल में चल कर नदी उतरे हों, ऐसा एक भी उल्लेख आगमों में नहीं है। कथा यों है;--
मार्ग में गंगा महानदी को पार करने के लिये भगवान् शुद्ध दंत नाविक की नौका में विराजे । नौका चलने लगी। उसी समय नदी के किनारे किसी वृक्ष पर से उल्ल बोला । उल्लु की बोली सुन कर नौका में बैठे हए क्षेमिल नाम के शकुन-शास्त्री ने कहा--"हम पर भयानक विपत्ति आनेवाली है।
पूर्वक पार पहुँचना असम्भव हैं। आशा का केन्द्र है तो ये महात्मा ही है। इन्हीं के पूण्यप्रभाव से हम बच सकते हैं।
भविष्यवेत्ता की बात सुन कर लोग भयभीत हो रहे थे। नौका अगाध जल में चल रही थी। इसी समय 'सुदंष्ट' नामक नागकुमार जाति के देव ने अपने पूर्वभव के शत्र भगवान महावीर को गंगानदी पार करते देखा । त्रिपृष्टवासुदेव के भव में जिस विकराल सिंह को मारा था, वही इस समय सुदंष्ट देव था। उसका वैर जाग्रत हआ। उसने भयंकर उपद्रव रूप जोरदार अन्धड़ चलाया--ऐसा कि जिससे बड़े-बड़े वृक्ष जड़ से उखड़ कर गिर गये, पर्वत कम्पायमान हो गए और गंगाजल की लहरें उछलने लगी। नौका डोलायमान हो कर झोला खाने लगी। मस्तूल टूट गया, पाल फट गया और प्रधान नाविक भान भल हो कर स्तब्ध रह गया। सभी यात्री मृत्यु-भय से भयाक्रांत हो कर अपने-अपने इष्टदेव का स्मरण करने लगे। भगवान् तो शान्तभाव से नौका के एक कोने में आत्मस्थ हो कर बैठे रहे । उनमें लेशमात्र भो भय नहीं था। प्रभु के पुण्य-प्रभाव से 'कम्बल' और 'सम्बल' नाम के नागकुमार जाति के दो देवों का ध्यान इस आकस्मिक उपद्रव की ओर गया । वे तत्काल वहाँ उपस्थित हुए। एक ने सुदंष्ट देव को ललकारा और उससे युद्ध करने लगा, इतने में दूसरे ने नौका को किनारे ला कर रख दिया। देवों ने प्रभु की वन्दना की। नौका के यात्रियों ने कहा--"भगवन् ! आप ही के पुण्य-प्रताप से हम बचे हैं। प्रभु नौका से उत्तर कर आगे चले।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org