Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कंबल और संबल का वृत्तांत
१६५ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
थी। उन्होंने परिग्रह-परिमाण व्रत ग्रहण करते समय गाय-भैंस आदि पशु नहीं रखने का नियम लिया था । अहीरों मे दूध-दही ले कर वे अपनी आवश्यकता पूरी करते थे। एक अहीरन उन्हें अच्छा दूध-दही ला कर देती थी। साधुदासी उसी से लेने लगी और विशेष में कुछ दे कर पुरस्कृत भी करने लगी। उन दोनों में स्नेह बढ़ा और बहिनों के समान व्यवहार होने लगा। कालान्तर में अहीरन के घर लग्नोत्सव का प्रसंग आया। उसने सेठ सेठानी को न्योता दिया। सेठ-सेठानी ने वस्त्रालंकार एवं अन्य सामग्री इतनी दी कि जिससे उसका उत्सव बहुत शोभायमान हुआ और उसकी जाति एवं सम्बन्धियों में भी उसका सम्मान हुआ । अहीर-दम्पत्ति बहुत प्रसन्न हुए । सेठ की असीम कृपा से परम आभारी बन कर गोपाल अपने दो श्वेत एवं सुन्दर युवा वृषभ की जोड़ी सेठ को अर्पण करने लगा । सेठ ने स्वीकार नहीं किया, तो वह सेठ के घर ला कर बाँध गया। सेठ ने सोचा-“यदि मैं इन्हें निकाल दूंगा, तो कोई इन्हें पकड़ लेगा और हल गाड़े या अन्य किसी कार्य में लगा कर दुःखी करेगा" ऐसा सोत्त्व कर रहने दिया और प्रासुक घास-पानी आदि से पोषण तथा स्नेहपूर्ण दुलार करने लगा। दोनों बछड़ों का भी सेठ-सेठानी पर स्नेह हो गया। उनमें समझ थी । सेठ-सेठानी को देख कर वे प्रसन्न और उत्साहित होते। अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वतिथि के दिन सेठ पौषधौपवास करते और उनके निकट नहीं आते, तो वे भी भूखे-प्यासे रह जाते । उनकी ऐसी मनोवृत्ति देख कर सेठ का स्नेह बढ़ा। वे उनको धर्म की बातें सुनाते । सुनते-सुनते वे भद्र-परिणामी हुए । जिस दिन सेठ-सेठानी के पौषध हो, उस दिन वे भी उपवासी रहते थे। इससे सेठ का स्नेह धर्म-स्नेह बन गया। बिना परिश्रम के उत्तम खान-पान से वे वृषभ पुष्ट और बहुत बलवान हो गए।
यक्षदेव का उत्सव था। लोग गाड़े और रथ ले कर उत्सव में जाने लगे। इस दिन वाहनों की दौड़ की होड़ लगती। जिनदास सेठ का एक मित्र भी इस होड़ में सम्मिलित होना चाहता था परन्तु उसके बैल प्रतिस्पर्धा में लगाने योग्य नहीं थे। उसने सेठ के युवा बैलों की जोड़ी देखी थी। वह आया। सेठ घर नहीं थे। वह मित्रता के नाते बिना पूछे ही बैल ले गया। प्रतिस्पर्धा में वह विजयी हुआ । परन्तु बैलों का बल और शरीर के संध टूट गये । मुंह से रक्त के वमन होने लगे। चाबुकों की मार से पीठ सूज गई। आर घोंपने से चमड़ी छिद कर रक्त बहने लगा । विजय प्राप्त कर के वह बैलों को सेठ के घर छोड़ गया। घर आने पर सेठ ने बैलों की दशा देखी, तो दंग रह गये । मित्र की निर्दयता पर अत्यन्त खेदित हुए । बैलों का मरण-काल निकट था। उन्होंने खान-पान बन्द कर दिया था। सेठ ने उन्हें त्याग कराये और नमस्कार मन्त्र सुनाया। सुनते सुनते ही समाधिपूर्वक
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