Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
इस प्रकार जयघोष से गगन-मंडल को गुंजाती हुई महाभिनिष्क्रमण-यात्रा क्षत्रियकुंड नगर में से चलने लगी । हजारों नेत्र मालाओं द्वारा देखे और हजारों हृदयों के अभिनन्दन स्वीकार करते हुए भ० महावीर ज्ञातखण्ड वन में पधारे ।
भगवान् महावीर की प्रव्रज्या
हेमन्तऋतु का प्रथम मास मृगशिर- कृष्णा दसवीं का सुव्रत दिन था । विजय नामक मुहूर्त और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र था । भगवान् शिविका पर से नीचे उतरे और अ वृक्ष के नीचे सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बिराजे | तत्पश्चात् अपने आभरणालंकार उतारने लगे । वैश्रमण देव गोदोहासन से रह कर श्वेत वस्त्र में वे अलंकार लेने लगा । आभरणालंकार उतारने के बाद भगवान् ने दाहिने हाथ से मस्तक के दाहिनी ओर के और बायें हाथ से बाई ओर के बालों का लोच किया । उन बालों को शकेन्द्र ने गोदोहासन से रह कर रत्न के थाल में ग्रहण किया और भगवान् को निवेदन कर क्षीर-समुद्र में प्रवेश कराया । भगवान् के वस्त्र उतारते ही शक्रेन्द्र ने देवदुष्य भगवान् के कंधे पर रखा ।
भगवान् के बेले का तप था । शक्रेन्द्र के आदेश से सभी प्रकार के वादिन्त्र और देवों और मनुष्यों का घोष रुक गया । सर्वत्र शान्ति छा गई । तत्पश्चात् भगवान् ने सिद्ध भगवंतों को नमस्कार कर के प्रतिज्ञा की कि - " सव्वं मे अकरणिजं पावं" = अब मेरे लिये सभी प्रकार के पाप अकरणीय है । इस प्रकार कह कर भगवान् ने सामायिक - चारित्र अंगीकार किया - " करेमि सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं ".. .. अप्रमत्तभाव में भगवान् ने चारित्र अंगीकार किया और उसी समय मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हो गया। इससे वे ढ़ाई द्वीप और दो समुद्र में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के मनोगत भाव जानने लगे । प्रव्रज्या स्वीकार करने के पश्चात् भगवान् ने “आज से बारह वर्ष पर्यन्त में अपने शरीर की सार सम्भाल और शुश्रूषा नहीं कर के उपेक्षा करूँगा और देव, मनुष्य और तियंच सम्बन्धी जितने भी उपसर्ग होंगे, वे शान्तिपूर्वक सहन करूँगा ।" इस प्रकार अभिग्रह कर के एक मुहूर्त दिन रहते भगवान्
अभिग्रह किया कि
विहार किया | वहां उपस्थित पारिवारिकजन और समस्त जनसमूह स्तब्ध रह कर भगवान् का विहार देखते रहे। सभी के हृदय भावावेग एवं स्नेहातिरेक से भरे हुए थे ।
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