Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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महाभिनिष्क्रमण महोत्सव
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देवच्छन्दक ( भव्य मण्डप जिस के मध्य में पीठिका बनाई हो) बनाया जो परम मनोहर सुन्दर एवं दर्शनीय था। उसके मध्य में एक भव्य सिंहासन रखा जो पादपीठिका सहित था । तत्पश्चात् इन्द्र भगवान् के निकट आया और भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा कर के वन्दन - नमस्कार किया । नमस्कार करने के पश्चात् भगवान् को ले कर देवच्छन्दक में आया और भगवान् को पूर्वदिशा की ओर सिंहासन पर बिठाया। फिर शतपाक और सहस्रपाक तेल से भगवान् का मर्दन किया । शुद्ध एवं सुगन्धित जल से स्नान कराया। तत्पश्चात् गन्धकाषायिक वस्त्र (लाल रंग का सुगन्धित अंगपोंछना) से शरीर पोंछा गया और लाखों के मूल्य वाले शीतल रक्तगोशीर्ष चन्दन का विलेपन किया। फिर चतुर कलाकारों से बनवाया हुआ और नासिका की वायु से उड़ने वाला मूल्यवान मनोहर अत्यंत कोमल तथा सोने के तारों से जड़ित, हंस के समान श्वेत ऐसा वस्त्र - युगल पहिनाया और हार अर्धहार एकावलि आदि हार, ( माला) कटिसूत्र, मुकुट आदि आभूषण पहिनाये । विविध प्रकार के सुगन्धित पुष्पों से अंग सजाया । इसके बाद इन्द्र ने दूसरी बार वैक्रिय समुद्घात कर के एक बड़ी चन्द्रप्रभा नामक शिविका का निर्माण किया । वह शिविका भी दैविक विशेषताओं से युक्त अत्यंत मनोहर एवं दर्शनीय थी। शिविका के मध्य में रत्नजड़ित भव्य सिंहासन पादपीठिका युक्त स्थापन किया और उस पर भगवान् को बिठाया । प्रभु के पास दोनों ओर शकेन्द्र और ईशानेन्द्र खड़े रह कर चामर डुलाने लगे। पहले शिविका मनुष्यों ने उठाई, फिर चारों जाति के देवों ने । शिविका के आगे देवों द्वारा अनेक प्रकार के वादिन्त्र बजाये जाने लगे । निष्क्रमण यात्रा आगे बढ़ने लगी और इस प्रकार जय-जय कार होने लगा,'भगवन् ! आपकी जय हो, विजय हो । आपका भद्र (कल्याण) हो । आप ज्ञान-दर्शन- चारित्र से इन्द्रियों के विषय विकारों को जीतें और प्राप्त श्रमण-धर्म का पालन करें । हे देव ! आप विघ्नबाधाओं को जीत कर सिद्धि प्राप्त करो । तपसाधना कर के हे महात्मन् ! आप राग-द्वेष रूपी मोह मल्ल को नष्ट कर दो। हे मुक्ति के महापथिक ! आप धीरज रूपी दृढ़तम कच्छ बाँध कर उत्तमोत्तम शुक्ल-ध्यान से कर्मशत्रु का मर्दन कर के नष्ट कर दो। हे वीरवर ! आप अप्रमत्त रह कर समस्त लोक में आराधना रूपी ध्वजा फहराओ । हे साधक-शिरोमणि ! आप अज्ञानरूपी अन्धकार को नष्ट कर के केवलज्ञान रूपी महान् प्रकाश प्राप्त करो। हे महावीर ! परीषहों की सेना को पराजित कर आप परम विजयी बने । हे क्षत्रियवर वृषभ ! आपकी जय हो, विजय हो । आपकी साधना निर्विघ्न पूर्ण हो । आप सभी प्रकार के भयों में क्षमा-प्रधान रह कर भयातीत बनें। जय हो । विजय हो ।"
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