Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सिद्धार्थ द्वारा अच्छन्दक का पाखण्ड खुला ••••••နနနနနန
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နေနေ့
ग्वाले को आश्चर्य हुआ। सभी बातें सत्य थी। उसने स्वीकार की । उसने गाँव में जा कर प्रचार किया कि बगीचे में एक बहुत बड़े महात्मा ध्यान कर रहे हैं । वे भूतभविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं, सर्वज्ञ हैं। मेरी सभी गुप्त बातें उन्होंने जान ली और यथावत् कह दी।' लोग उमड़े और भगवान् के समक्ष आ कर वन्दन करने लगे । सिद्धार्थ ने अदृश्य रह कर कहा--
"तुम सब ग्वाले की बात सुन कर मेरा चमत्कार देखने आये हो, तो सुनों।" सिद्धार्थ ने प्रत्येक के साथ घटी हुई खास-खास बातें कह सुनाई । इससे सभी लोग चकित रह गये । कुछ लोगों को भविष्य में होने वाली घटना भी बताई। अब तो लोगों की भीड़ लगने लगी। एक बार किसी भक्त ने कहा--"महात्मन् ! हमारे यहाँ एक अच्छन्दक नाम का ज्योतिषी है । वह भी त्रिकालज्ञ है।" सिद्धार्थ ने कहा--"तुम लोग भोले हो। वह धूर्त तुम्हें ठगता है । वस्तुतः वह कुछ नहीं जानता। वह बड़ा पापी है।"
लोगों ने अच्छन्दक से कहा। वह क्रोधित हो कर बोला-“मैं उस ढोंगी के पाखंड की पोल खोल दूंगा। देखू उसमें कितना ज्ञान है।" वह उत्तेजित हो कर बगीचे की ओर चला। लोग भी उसके पीछे हो लिये। अच्छन्दक ने अपने हाथ में घास का तिनका दोनों हाथों की अंगुलियों से इस प्रकार पकड़ा कि जिससे तिनके का एक सिरा एक हाथ की अंगुली में दबा और दूसरा सिरा दूसरे हाथ की अंगुली में, और बोला;-- ___ "कहो, यह तिनका में तोडूंगा, या नहीं ?"
उसने सोच लिया था कि यदि तोड़ने का कहेगा, तो मैं नहीं तोडूंगा और नहीं तोड़ने का कहेगा, तो तोड़ दूंगा। इस प्रकार इसे झूठा बना कर इसका प्रभाव मिटा दूंगा
और अपना सिक्का सवाया जमा लूंगा।" परन्तु हुआ उलटा । देव ने कहा;--"तू इस तण को नहीं तोड़ सकेगा।" अच्छन्दक ने उसे तोड़ने के लिये अंगुलियों पर दबाव डाला। देवशक्ति से तिनके के दोनों सिरे उसकी उँगलियों में शूल के समान गढ़ गये और रक्त झरने लगा। लोग-हँसाई हुई और उसका सारा प्रभाव नष्ट हो गया। वह वहाँ से खिन्नतापूर्वक उठा और चला गया।
अच्छन्दक को पद-दलित करने के लिए सिद्धार्थ ने कहा--
"यह अच्छन्दक चोर भी है। इसने इस वीरघोष का दस पल प्रमाण नाप.का एक पात्र चुरा कर इसके ही घर के पीछे पूर्व की ओर सरगने के वृक्ष के नीचे भूमि में गाड़ दिया और इन्द्रशर्मा का भेड़ चुरा कर मार खाया। उसकी हड्डियाँ बेर के वृक्ष के दक्षिण की ओर भूमि में दबा दी है।"
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