Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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संहरण और त्रिशला की कुक्षि में स्थापन
देवों ने उनका अभिषेक किया। और नन्दन देव संगीत आदि सुनने और यथायोग्य भोग भोगने लगे। उनकी स्थिति बीस सागरोपम प्रमाण थी । देव सम्बन्धी आयु पूर्ण होने के छह महीने पूर्व अन्य देवों की कान्ति म्लान हो जाती है शक्ति क्षीण होती है और वे खेदित होते हैं, परंतु नन्दन देव, विशेष शोभित होने लगे । उनकी कान्ति बढ़ने लगी । तीर्थंकर होने वाली महान् आत्मा के तो महान् पुण्योदय होने वाला है । उन्हें खेदित नहीं होना पड़ता ।
देवानन्दा की कुक्षि में अवतरण
दुःषम-सुषमा काल का अधिकांश भाग व्यतीत हो चुका था और मात्र पिचहत्तर वर्ष, नौ मास और पन्द्रह दिन शेष रहे थे। इस जम्बूद्वीप के दक्षिण भरत क्षेत्र में 'दक्षिण ब्राह्मणकुंड' नामक गाँव था । जहाँ ब्राह्मणों की बस्ती अधिक थी। वहां कोडालस गोत्रीय 'ऋषभदत' नामक ब्राह्मण रहता था। वह समर्थ, तेजस्वी एवं प्रतिष्ठित था । वेद-वेदांग, पुराण आदि अनेक शास्त्रों का वह ज्ञाता था। वह जीव अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक था। उसकी पत्नी जालन्धरायण गोत्रीय देवानन्दा सुन्दर, सुलक्षणी एवं सद्गुणी थी । वह भी आत्-धर्म की उपासिका एवं तत्त्वज्ञा थी । नन्दन देव, दसवें देवलोक से, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी को हस्तोत्तरा (उत्तराषाढ़ा) नक्षत्र में च्यव कर देव भव के तीन ज्ञान सहित देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । देवीस्वरूपा देवानन्दा ने तीर्थंकर के योग्य चौदह महास्वप्न देखे । देवानन्दा ने पति को स्वप्न सुनाये । विद्वद्वर ऋषभदत्त ने कहा--' प्रिये ! तुम्हारी कुक्षि में एक त्रिलोक पूज्य महान् आत्मा का आगमन हुआ है । इससे हम और हमारा कुल धन्य हो जायगा ।' धन-धान्यादि और हर्षोल्लास की वृद्धि होने लगी ।
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संहरण और त्रिशला की कुक्षि में स्थापन
गर्भकाल को बयासी रात्रि - दिन व्यतीत होने के पश्चात् प्रथम स्वर्ग के स्वामी
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x ग्रन्थकार एवं कल्पसूत्र में स्वप्न फल बताते हुए ऋषभदत्त के शब्द -- वह ऋगवेदादि शास्त्रों का पारंगत होना बतलाया यह उनके पैतृक विद्या की अपेक्षा ठीक हैं। परंतु भगवती सूत्र ९-३३ में ऋषभदत्त देवानन्दा को जीवादि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक बतलाया है । श्रमणोपासक शास्त्रज्ञ तो इन स्वप्नों का अर्थ -- तीर्थंकर का गर्भ में आना भी जान सकता है । कदाचित् वे वाद में श्रमणोपासक हुए हों ?
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