Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र-भाग ३
"हमारा वह पुत्र योग्य वय पा कर शूर वीर धीर एवं महान् राज्याधिपति होगा। प्रियतमे ! तुमने जो स्वप्न देखे, वे महान् हैं और महान् फल देने वाले हैं।" इस प्रकार कह कर महारानी को विशेष संतुष्ट किया।
पतिदेव से स्वप्नों का शुभतम फल सुन कर महारानी अत्यन्त प्रसन्न हुई । उन्होंने पति की वाणी का आदर करते हुए कहा--
"स्वामिन् ! आपका कथन यथार्थ है, सत्य है, निःसन्देह है। हमारे लिये यह इष्ट है, अधिकाधिक इष्ट है, आनन्द मंगलकारी है ।" इस प्रकार स्वप्न-फल को सम्यक रीति से स्वीकार करती है और सिंहासन से उठ कर राजहंसिनी-सी गति से अपने शयनागार में शय्यारूढ़ हो कर सोचती है;--
___ "मेरे वे महान् मंगलकारी स्वप्न किन्हीं अशुभ स्वप्नों से प्रभावहीन नहीं हो जाय, इसलिये मुझे अब निद्रा लेना उचित नहीं हैं ।" इस प्रकार विचार कर के देव, गुरु एवं धर्म सम्बन्धी मांगलिक विचारों, श्लोकों, स्तुतियों तथा धर्मकथाओं का स्मरण-चिन्तन करती हुई धर्म-जागरण से रात्रि व्यतीत की।
दूसरे दिन सिद्धार्थ नरेश ने राज्यसभा में विद्वान् स्वप्न-पाठकों को बुलाया और आदर सहित उत्तम आसनों पर बिठाया । महारानी त्रिशला को भी यवनिका की ओट में भद्रासन पर बिठाया। तत्पश्चात् नरेश ने अपने हाथों में उत्तम पुष्प-फल ले कर विनयपूर्वक स्वप्न पाठकों को महारानी के स्वप्न सुनाये और फल पूछा।
महाराज से स्वप्न-प्रश्न सुन कर स्वप्न-पाठक अत्यन्त प्रसन्न हुए और परस्पर विचार विनिमय कर के महाराज सिद्धार्थ से निवेदन किया;--
'' महाराज ! स्वप्न-शास्त्र में बहत्तर शुभ स्वप्नों का उल्लेख है। जिनमें से बयालीस स्वप्न तो सामान्य हैं और तीस महास्वप्न हैं। उन तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न आदरणोया महादेवो ने देखे हैं । शास्त्र में विधान है कि जिस माता को तीस महास्वप्न में से सात स्वप्न दिखाई दें, तो उसकी कुक्षि में ऐसी पुण्यात्मा का आगमन हुआ है, जो तीन खण्ड के परिपूर्ण साम्राज्य का स्वामी वासुदेव होता है, जो माता चार स्वप्न देखें उसका पुत्र 'बलदेव' होता है और एक महास्वप्न देखने वाली माता के गर्भ म मांडलिक राजा होने वाला पुत्र होता है । जिस महादेवी के गर्भ में चक्रवर्ती सम्राट या जिनेश्वर पद पाने वाली महानतम आत्मा का अवतरण होता है, वहीं चौदह महास्वप्न देखती है । इसलिये महाराज ! महारानी ने उत्तमोत्तम स्वप्न देखे हैं। इसके फल वरूप आपको महान् पुत्र लाभ, अर्थलाभ, भोगलाभ, सुखलाभ, राज्यलाभ एवं यशलाभ होगा।
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