Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
हो गई। उन्हें गर्भ के सुरक्षित होने का विश्वास हो गया । पुनः मंगलवाद्य बजने लगे । मंगलाचार होने लगा ।
गर्भस्थ प्रभु ने माता-पिता के मोह की प्रबलता देख कर अभिग्रह किया कि " जबतक माता-पिता जीवित रहेंगे, में दीक्षा नहीं लूंगा ।" यह अभिग्रह उस समय लिया जब गर्भ सात मास का था ।
भगवान् महावीर का जन्म
चैत्रशुक्ला त्रयोदशी को चन्द्रमा हस्तोत्तरा (उत्तरा फाल्गुनी ) नक्षत्र के योग में रहा था । अर्धरात्रि का समय था । सभी ग्रह उच्च स्थान पर थे। दिशाएँ प्रसन्न थीं । वायु मन्द मन्द और अनुकूल चल रहा था । सर्वत्र शान्ति प्रसन्नता एवं प्रफुल्लता छाई हुई थी और शुभ शकुन हो रहे थे। ऐसे आनन्दकारी सुयोग के समय त्रिशला महारानी ने लोकोत्तम पुत्र को जन्म दिया । प्रभु का जन्म होते ही तीनों लोक में उद्योत हो गया । कुछ क्षणों तक रात्रि भी दिन के समान दिखाई देने लगी । नरक के घोरतम अन्धकार में भी प्रकाश हो गया । महान् दुःखों से परिपूर्ण नारकजीव भी सुख का अनुभव करने लगे । देवों में हलचल मच गई । भवनपति जाति की भोगंकरा आदि छप्पन दिशाकुमारी देवियों ने प्रभु और माता का सूतिका कर्म किया । शक्र आदि ६४ इन्द्रों और अन्य देव-देवियों ने पृथ्वी पर आ कर भगवान् का जन्मोत्सव किया । मेरु पर्वत की ' अतिपांडुकबला' नामक शिला पर शक्रेन्द्र, प्रभु को गोदी में ले कर बैठा । देवों द्वारा लाये हुए तीर्थोदक की मोटी और पाषाणभेदक जलधारा प्रभु पर गिरती देख कर, इन्द्र के मनमें शंका उठी कि " प्रभु का मद्यज्ञान कोमलतम शरीर इस बलवती जलधारा को कैसे सहन कर सकेगा ?” प्रभु ने इन्द्र का सन्देह अपने अवधिज्ञान से जान लिया । इन्द्र की शंका का निवारण करने के लिए प्रभु ने अपने वायें पाँव के अंगूठे से मेरुशिला को दबाया। नगाधिराज सुमेरु के शिखर कम्पायमान हो गए । पृथ्वी कम्पायमान हुई और समुद्र क्षुब्ध हो गया । देवेन्द्र अवधिज्ञान से इसका कारण जाना, तो प्रभु के अनन्त बल से परिचित हुआ । इन्द्र नतमस्तक हो, प्रभु से मायाचना करने लगा । जन्मोत्सव कर के देवेन्द्र ने प्रभु को माता के पास ला कर
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* जन्मोत्सव का विशेष वर्णन भ० ऋषभदेवजी के चरित्र में हुआ है । वहां से देख लेना चाहिये । यहाँ पुनरावृत्ति नहीं की गई है ।
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