Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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गर्भ में हलन-चलन बन्द और अभिग्रह
गर्भकाल पूर्ण पर महारानी एक ऐसे पुत्र-रत्न को जन्म देगी, जो आपका कुलदीपक होगा । कुल कीतिकर, कुलनन्दीकर, कुल-यशकर, कुलवृद्धिकर और कुलाधार होगा। वह कुल में ध्वजा समान, कुलतिलक, कुलमुकुट तथा कुल में पर्वत के समान होगा । यौवनवय प्राप्त करने पर वह प्रबल पराक्रमी महावीर होगा । विशाल सेना और चतुर्दिक समुद्र के अन्तपर्यंत साम्राज्य का स्वामी चक्रवर्ती सम्राट होगा। अथवा धर्म-चक्रवर्ती तीर्थंकर होगा।"
स्वप्न-फल सुन कर महाराजा अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने आदरपूर्वक स्वप्न अर्थ को स्वीकार किया। महाराज ने स्वप्न-पाठक विद्वानों को विपुल प्रीतिदान दिया और सत्कारसम्मानपूर्वक बिदा किया। तत्पश्चात् महाराज यवनिका के भीतर गये और महारानी को विद्वानों का बताया हुआ स्वप्न-फल सुनाया। महारानी ने भी आदर सहित स्वप्नफल स्वीकार किया और अन्तःपुर में चली गई।
गर्भ में हलन-चलन बन्द और अभिग्रह
त्रिशलादेवी के गर्भ में आने के बाद शकेन्द्र ने त्रिभक देवों को आज्ञा दी कि वे भूमि पर रही हुई ऐसी पुरातन निधि-जिसका कोई अधिकारी नहीं हो, अधिकारी और उनके वंशज भी नहीं हो, ग्रहण कर सिद्धार्थ नरेश के भवन में रखे ।" देवों ने वैसे धन से सिद्धार्थ नरेश और उनके ज्ञातृकुल के भंडार भर दिये । जो अन्य नरेश श्री सिद्धार्थ नरेश से विमुख थे, वे अब अपने आप ही अनुकूल बन गये और उनका आदर-सत्कार करने लगे।
गर्भस्थ महावीर ने सोचा-'मेरे हलन-चलन से माता को कष्ट होगा' इसलिये वे स्थिर-निश्चल हो गए। उनकी निश्चलता से माता चिन्तित हो गई। माता को सन्देह हुआ-'मेरा गर्भ निश्चल क्यों है ? क्या किसी ने हरण कर लिया ? निर्जीव हो गया ? गल गया ?' वे उदास हो गई । उनका सन्देह व्यापक हो गया। समस्त परिवार और दास-दासियों में भी उदासी छा गई। रागरंग और मंगलवाद्य बन्द कर दिये गये। देवी शोकमग्न हो गई । ऐसे परमोत्तम पुत्र की माता बनने के मनोरथ की निष्फलता उन्हें मृत्यु से भी अधिक असहनीय अनुभव होने लगी। देवी का खेद एवं शोक रुक ही नहीं रहा था । म्लान मुखचन्द्र पर अश्रुधारा बह रही थी। गर्भस्थ भगवान् ने अपनी निश्चलता का परिणाम अवधिज्ञान से जाना। उन्हें माता का खेद शोक तथा सर्वत्र व्याप्त उदासीनता दिखाई दी । तत्काल आपने अंगुली हिलाई । बस, शोक के बादल छंट गए । माता प्रसन्न
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