Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ဖုန်း
तीर्थकर चरित्र-भा. ३
कककककककककककककककककककककककककककककककककककककर "भगवन् ! आपके प्रासुक विहार (उपाश्रय) कौन से है ? - "सोमिल ! ये आराम, उद्यान, देवकुल, सभा, प्रपा आदि स्थान जो गृहस्थों के हैं, उन में से निर्दोष स्थान जो स्त्री-पशु और नपुंसक से रहित हों, मैं प्रासुक-एषणीय पीठ-फलकादि ले कर विचरता हूँ। यह मेरे प्रासुक विहार हैं।"
उपरोक्त प्रश्न धर्म के विषय में पूछने के बाद सोमिल ने द्विअर्थी प्रश्न किया;-- "आपके लिये सरिसव भक्ष्य है या अभक्ष्य ?" "मेरे लिए सरिसव भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी"--भगवान् ने कहा। "यह कैसे हो सकता है"--पुनः प्रश्न ?
"सोमिल ! तेरे मत से सरिसव दो प्रकार के हैं,--१ मित्र मरिसव (समान वय वाले--सरीखे) और २ धान्य सरिसव । मित्र सरिसव तीन प्रकार के हैं-- १सहजात-- साथ जन्मे २ सहवधित--साथ बढे हुए ३ सहपांशुक्री ड़ित--साथ स्खले हुए। प्रथम प्रकार के ये तीनों श्रमण-निर्ग्रयों के लिए अभक्ष्य हैं।
धान्य सरिसव दो प्रकार के हैं--शस्त्र-परिणत और अशस्त्र-परिणत । अशस्त्रपरिणत अभक्ष्य है । शस्त्र-परिणत दो प्रकार का है--एषणीय और अनेषणीय । अनेषणीय अभक्ष्य है । एषणीय भी दो प्रकार का है--य चित और अयाचित । अयाचित अभक्ष्य है । याचित के भी दो भेद हैं--लब्ध--प्राप्त और अप्राप्त । अप्राप्त अभक्ष्य है । प्राप्त
"भगवन् ! मास आपके लिये भक्ष्य है । अभक्ष्य ? सरिसव प्रश्न के उत्तर में-- सामिल को व लने जैसा कुछ रहा ही नहीं, तब उसने दूसरा प्रश्न पूछा।
"सोमिल ! मास भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी।" "भगवन् ! मास में भेद कैसे हैं ?"
"मोमिल ! तुम्हारे शास्त्र में मास दो प्रकार का बताया है--द्रव्य मास और काल नाम । काल मास श्रावण-भाद्रपद यावत आषाढ पर्यंत बारह हैं। यह अभक्ष्य है। द्रव्य-गन भो दा प्रकार का है--अर्थमास अंर धान्यमास । अर्थ-पास (एक प्रकार का तोल) भी दा प्रकार का है--स्वर्ण-मास और रौप्य-मास । यह अभी य है। धान्य (उड़द) द! प्रकार का है--शस्त्रपरिणत और अशस्त्र-परिणत । अशस्त्र परिणत अभक्ष्य है । शस्त्र परिणत भी दो प्रकार है, इत्यादि सरिसववत् ।
इस प्रश्न के भी व्यर्थ जाने पर सोमिल ने नया प्रश्न उठाया;--
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