Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र - भा. ३
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प्रकट हुआ और बोला -- " सोमिल ! तेरी यह साधना अच्छा नहीं है ।" इस प्रकार दो तीन बार कहा। किंतु सोमिल ने उसकी उपेक्षा कर दी। इस प्रकार चारा रात्रि तक देव आ कर सोमिल से कहता रहा और सोमिल उपेक्षा करता रहा । पाँचवें दिन की रात भी देव आया और इसी प्रकार बोला । दो बार कहने तक तो वह नहीं बोला, जब तीसरी बार कहा तो सोमिल ने पूछा - "क्यों, मेरी प्रव्रज्या बुरी कैसे है ?" देव ने कहा - "देवानुप्रिय ! तुमने भगवान् पार्श्वनाथ से पांच अणुव्रतादि श्रावक-धर्म स्वीकार किया था । उस सम्यग् धर्म को त्याग कर यह दुःप्रव्रज्या स्वीकार की । यह अच्छा नहीं किया ।"
सोमिल ने देव से पूछा - " कृपया आप ही बतावें कि मैं सुप्रव्रजित कैसे बनूं ?" देव ने कहा--" आप पूर्ववत् बारह व्रतों का पालन करें, तो वह प्रव्रज्या सम्यक् हो सकती है ।"
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सोमिल ने देव की बात स्वीकार कर ली। देव सोमिल को नमस्कार कर के चला गया । सोमिल पुनः श्रावक व्रत पालने लगा । और उपवास यावत् मासखमण तप करता हुआ विचरने लगा | उनने अर्धमास की संलेखना कर के और अपनी पूर्व विराधना की शुद्धि नहीं कर के आयु पूर्ण कर वह शुक्र महाग्रह देव हुआ ।
यही देव भगवान् महावीर प्रभु को वन्दन करने आया था । गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् महावीर ने उसका पूर्वभव इस प्रकार सुनाया और कहा -- " देवभव पूर्ण कर यह महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य होगा और निग्रंथ प्रव्रज्या स्वीकार कर के मुक्ति प्राप्त करेगा।"
काली आर्यिका विराधक हो कर देवी हुई
आमलकल्पा नगरी में काल नामक धनाढ्य गृहस्थ रहता था । उसकी कालश्री भार्या से उत्पन्न 'काली' नामक पुत्री थी । वह काली पुत्री, यौवनवय में भी वृद्धावृद्ध. शरीर वाली -- दिखाई देती थी। उसका शरीर जराजीर्ण लगता था । वह कुमारी होते हुए भी गतयौवना की भाँति विगलित अंगोपांग वाली थी। उसके स्तन लटक गये थे । उससे लग्न करने को कोई भी युवक तैयार नहीं था । वह पति से वंचित थी ।
एकदा भगवान्ं पार्श्वनाथ स्वामी आमलकल्पा नगरी पधारे और आम्रशाल उद्यान में बिराजे । नागरिक जनता के समान काली कुमारी भी अपने माता-पिता की आज्ञा ले
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