Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उपासक बन गया
८७ पिडककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर
"भगवन् ! आपके लिये कुलस्था भक्ष्य है या अभक्ष्य ?"
"सोमिल ! कुलस्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी । तुम्हारे मत से कुलस्था के दो भेद हैं । स्त्री कुलस्था (कुलांगना) और धान्य कुलस्था । स्त्री कुलस्था तीन प्रकार की है--कुलकन्या, कुलवधू और कुलमाता । ये तीनों अभक्ष्य हैं । धान्य कुलस्था के भेद और भक्ष्याभक्ष्य, धान्य सरिसव के अनुसार है।"
सोमिल इस में भी सफल नहीं हुआ, तो उलझन भरा एक और अंतिम प्रश्न पूछ।';
"भगवन् ! आप एक हैं, दो हैं, अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेक भूत-भाव-भाविक हैं ?"
"हाँ सोमिल ! में एक यावत् भूत-भाव-भाविक हूँ। द्रव्यापेक्षा मैं एक हूँ । ज्ञान और दर्शन के भेद से दो हूँ, आत्म-प्रदेश से अक्षय, अव्यय और अवस्थित हूँ। उपयोग से मैं अनेक भूत, वर्तमान और भावी परिणामों के योग्य हूँ।
भगवान् के उत्तर से सोमिल संतुष्ट हुआ और भगवान् के उपदेश से प्रतिबोध पा कर बारह प्रकार का श्रावक-धर्म अंगीकार कर विचरने लगा। भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी वाराणसी से विहार कर अन्यत्र पधारे । कालांतर में असाधु-दर्शन से मिथ्यादृष्टि बन गया। उसने वाराणसी के बाहर, पुष्पों और फलों के बगीचे लगवाये और उनकी शोभा एवं सुन्दरता में लुब्ध रहने लगा। उसके बाद उसने 'दिशाप्रोक्षक' प्रव्रज्या स्वीकार की और गंगानदी के किनारे रह कर तपस्या पूर्वक साधना करने लगा। कालान्तर में उसने अनित्यता का चिन्तन करते हुए महाप्रस्थान करने का निश्चय किया और अन्य तापसों से पछ कर और अपने उपकरण ले कर तथा काष्ठ-मुद्रा (लकड़ी की मुंहपत्ति) से मुंह बाँध कर (कट्टमुद्दाए मुहं बंधइ) उत्तर दिशा की ओर चल दिया। उसका अभिग्रह था कि यदि वह चलते-चलते कहीं गड्ढे आदि में गिर जायगा, तो वहां से उठेगा नहीं, और उसी दशा में आयु पूर्ण करेगा । इस साधना के चलते अर्द्धरात्रि के समय सोमिल के समक्ष एक देव
. सोमिल का उपरोक्त वर्णन पुष्पिका उपांग के तीसरे अध्ययन में है। किंतु प्रश्नोत्तर के लिए भगवती सूत्र (शतक १८ उद्देशक १०) का निर्देश कर के संक्षेपित कर दिया है। भगवती में भी सोमिल ब्राह्मण के ही प्रश्न हैं, किंतु वह वाणिज्यग्राम का निवासी था और अपने एक सौ शिष्यों के साथ भगवान् महावीर के पास आया था। वह श्रमणोपासक हो कर आराधक हुआ था। किंतु यह सोमिल स्थिर नहीं रह सका । असाधु-दर्शन से विचलित हो कर पतित हो गया। इस प्रकार दोनों में भेद बहुत है।
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