Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अश्वग्रीव को होने वाला शत्रु .....................
......................... शस्त्र था। वह युद्धप्रिय और महान साहसी था । उसने अपने पंराक्रम से भरत-क्षेत्र के तीन खण्डों पर विजय प्राप्त कर ली और उन्हें अपने अधिकार में कर लिया। अश्वग्रीव महाराज की आज्ञा में सोलह हऔर बड़े-बड़े राजां रहने लगे। वह वासुदेव के समान (प्रति वासुदेव) हुआ। वह एक छत्र साम्राज्य का अधिपति हो गया।
अश्वग्रीक का होने वाला शत्रु :: एक बार अश्वग्रीव के मन में विकल्प उत्पन्न हुआ कि-"मैं दक्षिण भरत क्षेत्र का स्वामी हूँ। अब तक मेरी सक्षा को चुनौती देने वाला, कोई दिखाई नहीं दिया, किन्तु 'भविष्य में मेरे साम्राज्य के लिए भय उत्पन्न करने वाला भी कोई वीर उत्पन्न हो सकता है क्या ?' इस विचार के उत्पन्न होते ही उसने अश्वबिन्दु नाम के निष्णात भविष्यवेत्ता को बुलाया और अपना भविष्य बताने के लिए कहा। भविष्यवेत्ता ने विचार कर के कहा.. " राजेन्द्र ! जो व्यक्ति आपके चण्डसेन नाम के दूत का पराभव करे और पश्चिमी सीमान्त के वन में रहने वाले सिंह को मार डाले, वही आपके लिए घातक बनेगा।"
भविष्यवेत्ता का कथन सुनकर राजा के मन को आघात लगा। किन्तु अपना क्षोभ दबाते हुए पंडित को पुरस्कार दे कर' बिदा किया। उसी समय वनपालक की ओर से एक दूत आया और निवेदन करने लगा;--
"महाराजाधिराज की जय हो। मैं पश्चिम के सीमान्त से आया हूँ। यों तो आपके प्रताप से वहाँ सुख-शांति व्याप रही है, किन्तु वन में एक प्रचण्ड केसरीसिंह में उत्पात मचा रखा है । उस ओर के दूर-दूर तक के क्षेत्र में उसका आतंक छाया हुआ है । पशुओं को ही नहीं, वह तो मनुष्यों को भी अपने जबड़े में दबा कर ले जाता है। अब तक उसने कई मनुष्यों को मार डाला । लोग भयभीत हैं । बड़े-बड़े साहसी शिकारी भी उससे डरते हैं । उसकी गर्जना से स्त्रियों के ही नहीं, पशुओं के भी गर्भ गिर जाते हैं। लोग घर-बार छोड़ कर नगर की ओर भाग रहे हैं। इस दुन्ति वनराज का अन्त करने के लिए शीघ्र ही कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। मैं यही प्रार्थना करने के लिए सेवा में उपस्थित हुआ हूँ।"
राजा नै दूत को आश्वासन दे कर बिदा किया और स्वयं उपाय सोचने लगा। उसने विचार किया कि भविष्यवेत्ता के अनुसारे,'शत्रु को पहिचानने का यह प्रथम निमित्त . उपस्थित हुआ है । उसने उस प्रदेश की सिंह से रक्षा करने के लिए अपने सामन्त राजाओं
को आज्ञा दी। वे क्रमानुसार आज्ञा का पालन करने के लिए जाने लगे। ... ।
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