Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
८०
तीर्थंकर चरित्र - भाग ३
कुकुकुकुकुकुककककककककककक ककककककककककककककककककककक कककककककककक
प्रकार नरक के समान दुःख भोगते हुए उन्हें छह मास व्यतीत हो चुके । इतने में सन्यासी के वेश में छुपे कुछ डाकुओं को विपुल धन के साथ पकड़ कर सुभटों ने न्यायाधिकारी के समक्ष उपस्थित किया। पूछताछ करने पर भी उन्होंने सत्य स्वोकार नहीं किया, तो सब को मृत्यु-दंड सुनाया गया । मृत्यु का समय निकट आने पर प्रमुख सन्यासी ने सत्य स्वीकार किया । उसने कहा - ' इस धन का चोर तो मैं ही हूँ । मैने ही इस नगर में चोरी के यह धन प्राप्त किया है। बहुत सा धन मैंने वन में जहाँ-तहाँ भूमि में रख छोड़ा हैं । आप उसे प्राप्त कर के जिसका हो, उन्हें लौटा दें और मुत्युदंड देदें । परन्तु इन सब को छोड़ दें ।”
कर
सन्यासी की पाप-कथा
न्यायाधिकारी ने पूछा - " तुम तो तेजस्वी हो, किसी उच्चकुल के लगते हो । तुमने ऐसा निन्दनीय कार्य क्यों किया ?”
" महात्मन् ! मेरी विषयासक्ति ने मुझे नीच कर्म करने को विवश किया । मेरी पापकथा सुनिये ।"
66
1
'मैं पुण्ड्रवर्धन नगर के सोमदेव ब्राह्मण का पुत्र हूँ । नारायण मेरा नाम है । मैं बलिदान से स्वर्ग प्राप्ति का सिद्धांत मानने और प्रचार करने वाला था। एक बार कुछ सुभटों द्वारा कुछ पुरुषों को धन के साथ बन्दी बना कर लाते हुए मैंने देखा । मैने कहा -" इन चारों को तो मार ही डालना चाहिये ।" मेरी बात निकट रहे हुए एक मुनि ने सुनी । वे अतिशय ज्ञानी थे । उन्होंने कहा - " भद्र ! बिना जाने ऐसा अनिष्टकारी वचन कह कर, पाप में नहीं पड़ना चाहिए ।" मैने महात्मा को नमस्कार कर के पूछा - " मेरा अज्ञान क्या है ? क्या मैंने झूठ कहा है ?"
Jain Education International
“भाई ! बिना साँच-झूठ का निर्णय किये किसी पर झूठा कलंक लगाना और मृत्युदण्ड देने का कहना पाप है । ये बिचारे पूर्व के पाप के उदय में आये हुए अशुभकर्म का फल भोग रहे हैं । इनके वर्तमान कृत्य को जाने बिना ही इन पर चोर होने का दोष मढ़ना पाप ही है । तुमने खुद ने पूर्वभवों में जो दूसरे पर झूठा कलंक लगाना था, उसका अवशेष रहा फल भोगने का समय आयगा, तब तुझे मालूम होगा ।' -महात्मा ने कहा । मैने पूछा - "भगवान् ! मैने पूर्वभव में कौनसा पाप किया था, जिसका अवशेष फल मुझे अब भोगना पड़ेगा ?"
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org