Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तीर्थंकर चरित्र भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक्क्य
दाँत, केश, नख, सींग, कोड़ियाँ, शंख आदि सभी अंग इस भेद में आगए ।
७. लाक्ष वाणिज्य-लाख का व्यापार । इसमें जीवों की हिंसा अधिक होती है । उपलक्षण से इस भेद में उन वस्तुओं का ग्रहण भी किया है, जिनके योग से शराब आदि बनते हैं। वैसे-छाल, पुष्प आदि तथा मनशील, नील, धावड़ी और टंकणखार आदि, विशेष. रूप से पापजनक व्यापार ।
८ रस वाणिज्य-मक्खन चर्बी, शहद, शराब, दूध, दही, घृत, तेल आदि का व्यापार करना । मक्खन में संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है तथा प्रवाही वस्तु में छोटे-बड़े जीव गिर कर मर जाते हैं । शहद और चर्बी की तो उत्पत्ति ही त्रस जीवों की हिंसा से होती है। शराब नशीली और उन्माद बढ़ाने वाली वस्तु है।
सभी प्रकार के आसव, स्प्रीट, तेजाब, मुरब्बे, अचार, फिनाइल आदि के व्यापार का समावेश भी इसमें होता है।
केश वाणिज्य-केश (बाल) का व्यापार । इस भेद में केश वाले जीव-दासदासो (गुलामों) का व्यापार, गायें, घोड़ें, भेड़ें, ऊँट, बकरे आदि पशुओं का व्यापार । द्विपद चतुष्पद का व्यापार ।।
१० विष वाणिज्य-सभी प्रकार के विष-जहर का व्यापार । जिनके सेवन से स्वा: स्थ्य और जीवन का विनाश हो ऐसे-सोमल, अफीम, संखिया आदि । इस भेद में तलवार, छुरी, चाकू, बन्दूक, पिस्तोल, आदि प्राणघातक शस्त्रों का भी समावेश हो जाता है।
.. योगशास्त्र में पानी खींचने के अरहट्ट पम्प आदि के व्यापार को भी ‘विषवाणिज्य' में लिया है।
११ यन्त्र-पीडन कर्म-इक्षु, तिल आदि पील कर रस, तेल आदि निकालना, पत्रपुष्पादि में से तेल-इत्रादि निकालना । चक्की, मूसल, ओखली, अरहट्ट, पम्प, चरखी, घानी, कपास से रुई बनाने की जिनिंग-फेक्टरी, प्रेस, टेक्टर आदि यन्त्रों से आजीविका चलाना। इससे त्रस-स्थावर जीवों की बहुत बड़े परिमाण में हिंसा होती है।
१२ निर्लाछन कर्म-बैल, घोड़े, ऊँट आदि जीवों के कान, नासिका, सींग, आदि का छेदन करना, नाथ डालना, कान चीरना, गर्म लोहे से दाग कर चिन्हित करना, पूंछ काटना, बधिया (खस्सी) बना कर नपुंसक करना। .
ये कार्य क्रूरता के हैं। इनसे जीवों को बहुत दुःख होता है । ऐसे कार्य करके आजीविका करना-'अनार्य-कर्म' है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org