Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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धर्म देशना - श्रावक व्रत စာဟာ FFFFAFFFFAFFFFA
जो अचित वस्तु सचित्त से जुड़ी हुई है, उसको सचित्त से अलग कर के खाना-जैसे वृक्ष से लगा हुआ गोंद, पके हुए फल या सचित्त बीज से संबद्ध अचित्त फल आदि ३ तुच्छौषधि भक्षण - जो वस्तु तुच्छ हो, जिसमें खाना कम और फेंकना अधिक हो-जैसे सीताफल टिम्बरू आदि । ४ अपक्व वस्तु का भक्षण-जो पकी नहीं हो, उस वस्तु का खाना और ५ दुःकत्र वस्तु का भक्षण - बुरी तरह से पकाई हुई वस्तु का खाना - अधपकी वस्तु खाना |
उपरोक्त अतिचार भोजन सम्बन्धी है । कर्म सम्बन्धी पन्द्रह अतिचार इस प्रकार है ।
१ अंगार जीविका - लकड़ी जला कर कोयले बनाना, चने आदि की भाड़ चला कर भुनना, कुंभकार, लुहार, स्वर्णकार आदि के धन्धों से अग्नि का आरम्भ कर के आजीविका करना । ईंटें, चूना बरतन आदि पकाना ।
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२ वन जीविका - काटे हुए अथवा नहीं काटे हुए वन के पान, फूल, फल ( लकड़ी घास) आदि बेंचना, धान्य को खांडने - पीसने का काम करना या चावल, दालें, आटा आदि बना कर बेचना । जिसमें वनस्पतिकाय की हिंसा अधिक हो, वह 'वनजीविका' है ।
३ शकट जीविका - गाड़ियाँ, गाड़ियों के पहिये, धुरी आदि बनवाना या बना कर चलाना अथवा बेचना । इसमें मोटरें, रथ, साइकल, ट्राम, रेल, इञ्जिन, वायुयान आदि का भी समावेश होता है ।
४ भाटी कर्म - गाड़े, बैल, घोड़े, ऊँट, गधे, आदि को भाड़े पर दे कर आजीविका चलाना । मकान बना कर भाड़े से देना । मोटर साइकल आदि भाड़े चलाना ।
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५ स्फोट कर्म जीविका - सरोवर- कुएँ तालाब आदि खोदना, हल से भूमि जोतना, पत्थर घड़ना, खान खोद कर पत्थर निकालना । इन सब में पृथ्विकाय, वनस्पतिकाय और काय जीवों की विराधना अधिक परिमाण में होती है । धान्य को दल- पीस कर बेचना ( धान्य फोड़ना, चूर्ण करना) भी इस भेद में गिना है ।
संबंधी है । व्यापार सम्बन्धी अतिचार इस
उपरोक्त पाँच अतिचार 'कर्म' प्रकार है ।
६ दंत वाणिज्य - हाथीदांत, चँवरी गाय आदि के केश, नख, हड्डियें, चमड़ा तथा रोम आदि ।
दंत वाणिज्य को धर्मसंग्रह' में ' दन्ताश्रिता' कहा है । इसका अर्थ है- दाँत के आश्रय से रहे हुए शरीर के अवयव । शरीर के सभी अंगों का समावेश इसमें हुआ है ।
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