Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर-चरित्र भाग ३
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से मैं यहाँ आया हूँ और तुम्हारे हित के लिये सूचित करता हूँ कि तुम घेरा उठा कर शीघ्र ही अपने देश चले जाओ । यदि तुमने ऐसा किया, तो हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे और इसी में तुम्हारा हित है । परिणाम सोचे बिना दुःसाहस करना दुःखदायक होता है।'
राजदूत की बात सुन कर यवन क्रोधित हआ और कडक कर बोला--
"ओ असभ्य दूत ! किससे बात कर रहा है तू ! मैं तेरे अश्वसेन को भी जानता हूँ। वह वृद्ध हो गया है, फिर भी अपने बल का भय दिखा रहा है तो खुद क्यों नहीं आया-मुझ से लड़ने के लिये ? छोकरे को क्यों भेजा ? वे दोनों पिता-पुत्र और उसके अन्य साथी आ जावें, तो भी मैं उन सब को किसी गिनती में नहीं मानता। जा भाग और तेरे पाशवकुमार से कह कि वह मेरे क्रोध का ग्रास नहीं बने और शीघ्र ही यहाँ से भाग जाय । अन्यथा जीवित नहीं रह सकेगा।"
यवन के धृष्टतापूर्ण वचन को स्वामीभक्त दूत सहन नहीं कर सका । उसने कुपित होकर कहा,--
"रे दुराशय यवन ! तू मेरे स्वामी को नहीं जानता । वे अनन्त बली हैं । वे देवेन्द्र के लिये भी पूज्य हैं। उन अकेले के सामने तू और तेरी सेना ही क्या, संसार की कोई भी शक्ति ठहर नहीं सकती। तेरे जैसे को तो वे मच्छर के समान मसल सकते हैं । तू उनकी महानता नहीं जानता। उनकी सेवा में देवेन्द्र ने अपने शस्त्र और रथ भेजे हैं। यह उनकी तुझ पर कृपा है कि तुझे समझा कर जीवित रहने का सुयोग प्रदान कर रहे हैं । अन्यथा अपनी गर्वोक्ति का फल तू तत्काल पा लेता।"
दूत के वचन सुन कर यवन के सैनिक भड़क उठे और शस्त्र उठा कर बोले;--
"अरे अधम दूत ! इस प्रकार बढचढ़ कर बातें करते तुझे लज्जा नहीं आती ? क्या मृत्यु का भय भी तुझे नहीं है ? तेरी इन धृष्टतापूर्ण बातों से तेरे स्वामी का विनाश ही होगा। हम उसे सेना सहित यमधाम पहुँचा देंगे। ले अब तू भी अपनी धृष्टता का थोड़ा-सा स्वाद चख ले"-कहते हुए सैनिक उसकी ओर बढ़े।
उसी समय यवनराज का एक वृद्ध मन्त्री उठ कर बोला--
"सुनो ! तुम लोग दुःसाहसी हो। तुममें विवेक का अभाव है। बिना समझे उत्तेजित होने से हानि ही उठानी पड़ती है । तुम चुप रहो । दूत तो किसी भी स्थिति में अवध्य होता है । क्या करना, किसी को दण्ड देना, या मुक्त करना यह महाराज के और हमारे सोचने का विषय है । तुम चुप रहो।"
मन्त्री ने सुभटों को शांत कर के आये हुए दूत का प्रेमपूर्वक हाथ थामा और मीठे
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