Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर - चरित्र भाग ३
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हो गए। हाथी कोधान्ध हो कर सूंड उठाये मुनिराज पर झपट ही रहा था कि उनके तपतेज से उसका क्रोध शान्त हो गया । वह एकटक महात्मा को निहारने लगा । हाथी को शांत देख कर महर्षि ने उसे सम्बोधित किया; --
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' मरुभूति ! तेरी यह क्या दशा हुई ? अरे तू मनुष्य भव खो कर पशु हो गया ? स्मरण कर अपने पूर्वभव को । तू धर्मच्युत नहीं होता, तो पशु नहीं बनता । देख मैं वही पोतनपुर का राजा अरविंद हूँ । स्मरण कर और अब भी संभल। सेतू पतित हो चुका, उसे फिर से ग्रहण कर और अपना शेष जीवन सुधार
जिस उत्तम धर्म
महर्षि की वाणी ने गजराज को सावधान कर दिया । स्मरण की एकाग्रता से जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और पूर्वभव की सभी घटनाएँ स्पष्ट दिखाई दी । उसने महात्मा के आगे मस्तक झुका कर प्रणाम किया । मुनिश्री ने हाथी की अनुकूलता देख कर कहा; -
" भद्र ! जिस श्रावकधर्म का तेने ब्राह्मण के भव में पालन किया, वह तुझे पुनः प्राप्त हो और तू दृढ़तापूर्वक धर्म की आराधना करने में लग जा ।"
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मरुभूति ने महर्षि की शिक्षा शिरोधार्य की । उसके पास ही हथिनी (जो पूर्वभव में कमठ की पत्नी वरुणा थी) खड़ी सब सुन रही थी वह भी जातिस्मरण पा कर अपना पूर्वभव देख रही थी । उसने भी धर्म स्वीकार किया। मुनिराज अन्यत्र विहार कर गए । गजराज अब पूरा धर्मात्मा बन गया । वह चलता तो देख कर जीवों को बचाता हुआ चलता । बेला-तेला आदि तपस्या करता, सूखे पत्ते खाता और सूर्य ताप से तपा हुआ पानी पीता । वह सोचता रहता - "अरे, मैं तो स्वयं श्रमण - प्रव्रज्या धारण करना चाहता था, परन्तु बीच में ही क्रोध की ज्वाला में तप कर पुनः प्रपंच में पड़ गया । यदि मैं उस समय नहीं डिगता, तो मेरा मनुष्यभव व्यर्थ नहीं जाता ।" वह शुभ भावों में रत रहने लगा । उसके मन में से भोग भावना निकल चुकी थी । तपस्या से उसका शरीर कृश हो गया । वह एक सरोवर में पानी पीने गया, तो दलदल में ही फँस गया। दुर्बल शरीर और शक्तिहीनता के कारण वह कीचड़ में से निकल नहीं सका । अब वह दलदल में फँसा हुआ ही धर्मचिन्तन करने लगा ।
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मरुभूति को मार कर भी कमठ तापस शांत नहीं हुआ । गुरु और अन्य सन्यासियों द्वारा निन्दित कमठ दुर्ध्यानपूर्वक मर कर कुक्कुट जाति का सर्प हुआ। वह पंख वाले यमराज के समान उड़ कर जीवों को डसने लगा। एक दिन वह सर्प मरुभूति हाथी के
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