Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
उदय हो तो क्षयोपशम कहा जाता है। प्रतिपक्षी कर्म की इस अवस्था में होने वाले ज्ञान को क्षायोपशमिक कहते हैं। अन्तिम केवलज्ञान क्षायिक है। वह सम्पूर्ण ज्ञानावरण के क्षय से प्रकट हुआ करता है। 1. मतिज्ञान के आवरण के क्षयोपशमसे और इन्द्रिय-मन के अवलम्बन से __मूर्त-अमूर्त द्रव्य का विकलरूप से (अपूर्ण रूप से) विशेषतः अवबोधन
करता है वह आभिनिबोधिकज्ञान है। 2. श्रुतज्ञान के आवरण के क्षयोपशम से और मन के अवलम्बन से मूर्त-अमूर्त
द्रव्य का विकलरूप से विशेषत: अवबोधन करता है वह श्रुतज्ञान है। 3. अवधि ज्ञान के आवरण के क्षयोपशम से ही मूर्त द्रव्य का विकलरूप
से विशेषत: अवबोधन करता है वह अवधिज्ञान है। 4. मन:पर्ययज्ञान आवरण के क्षयोपशम से ही परमनोगत (दूसरों के मन के
साथ सम्बन्ध वाले) मूर्तद्रव्य का विकलरूप से विशेषत: अवबोधन करता
है वह मनः पर्यय ज्ञान है। 5. समस्त आवरणके अत्यन्त क्षय से, केवल ही (अकेला आत्मा ही) मूर्तः,
अमूर्त द्रव्य का सकलरूप से विशेषत: अवबोधन करता है वह स्वभाविक केवलज्ञान है। 1. मतिज्ञान
मदिणाणं पुण तिविहं उवलद्धी भावणं च उवओगो। तह एवं चदुवियप्पं दंसणपुव्वं हवदि णाणं।(1)
. (पञ्चास्तिकाय पृ.141) .. मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम होने पर पांच इन्द्रिय और मन के द्वारा
जो कोई मूर्तिक और अमूर्तिक वस्तुओं को विकल्प सहित या भेद सहित जानता है वह मतिज्ञान है। सो तीन प्रकार हैं- मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो पदार्थो को जानने की शक्ति प्राप्त होती है उसको उपलब्धि मतिज्ञान कहते हैं। यह नीला है, यह पीला है इत्यादि रूप से जो पदार्थ के जानने का व्यापार उसको उपयोग मतिज्ञान कहते हैं। जाने हुए पदार्थ को बारम्बार
.. 61
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org