Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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4 passions 2011, 5 caused by the activity of the 5 kinds of vowlessness अव्रत; 25 caused by the 25 kinds of Activity क्रिया। पूर्व के अर्थात् साम्परायिक कर्मास्रव के इन्द्रिय कषाय, अव्रत और क्रियारूप भेद हैं जो क्रम से पाँच, चार, पाँच और पच्चीस हैं। स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रिय क्रोध आदि चार कषाय, हिंसादि पाँच अव्रत और 25 सम्यक्त्व क्रिया आदि से साम्परायिक आस्रव होता है। द्रव्य संग्रह में आम्रव का वर्णन प्रकारान्तर से निम्न प्रकार भी पाया जाता है
मिच्छात्ताविरदिपमादजोगकोहादओऽथ विण्णेया। पण-पण पणदह तिय चदु कमसो भेदा दु पुव्वस्स॥ (30)
अब प्रथम जो भावानुव है उसके मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, योग और क्रोध आदि कषाय ऐसे पांच, भेद जानने चाहिये, और मिथ्यात्व आदि के क्रम से पांच, पन्द्रह, तीन और चार भेद समझने चाहिये। अर्थात् मिथ्यात्व के पांच भेद, अविरति के पांच भेद, प्रमाद के पन्द्रह भेद, योग के तीन भेद और क्रोध आदि कषायों के चार भेद जानने चाहिये। (1) पंचेन्द्रिय - (1) स्पर्शन (2) रसना (3) घ्राण (4) चक्षु (5) कर्ण। चक्षु आदि इन्द्रिय के द्वारा जो विषय में प्रवृति होती है उससे साम्परायिक आम्रव होता है। (2) चतुः कषाय- (1) क्रोध (2) मान (3) माया (4) लोभ से भी साम्परायिक आम्रव होता है। (3) पांच अव्रत - (1) हिंसा (2) झूठ (3) कुशील (4) चोरी (5) परिग्रह से भी साम्परायिक आम्रव होता है। (4) 25 क्रियाओं - 25 क्रियाओं से भी साम्परायिक आस्रव होता है। उसका वर्णन निम्न प्रकार है(1) सम्यक्त्व - चैत्य (जिन प्रतिमा) गुरू और शास्त्र की पूजा, स्तवन आदि रूप सम्यक्त्व को बढ़ाने वाली सम्यक्त्व क्रिया है। (2) मिथ्यात्व - मिथ्यात्व के उदय से जो अन्य देवता के स्तवन आदि
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