Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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शुद्धाचरणशीला या मायाकौटिल्यवर्जिताः । विचारचतुरा दक्षा
दानपूजादितत्पराः ॥98৷
दृग्ज्ञानभूषिताः ।
स्वल्पाक्षशर्मसंतोषान्विता नार्यः पुंवेदपाकेन जायन्तेऽत्र च मानवा: ।1991 ( श्री वीरवर्धमानचरिते )
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जो शुद्धाचरणशाली है, माया कुटिलता से रहित हैं, हेय - उपादेय के विचार में चतुर हैं, दक्ष है, दान-पूजादि में तत्पर हैं, अल्प इन्द्रिय सुख से जिनका चित्त सन्तोष- युक्त है, और सम्यग्दर्शन ज्ञान से विभूषित हैं, ऐसी स्त्रियाँ पुरुष वेद के परिपाक से यहाँ पर मनुष्य होती हैं।
नपुंसक वेदनीय के आस्रव:- प्रचुर मात्रा में कषाय करना, गुप्त इन्द्रियों का विनाश करना और परस्त्री से बलात्कार करना आदि नपुंसक वेदनीय के आम्रव हैं।
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अतीवकामसेवान्धाः परदारादिलम्पटाः । अनङ्गक्रीडानासक्ता निःशीला व्रतवर्जिताः ।।1001
नीचा नीचमार्गप्रवर्तिनः ।
नीचधर्मरता ये ते नपुंसकाः स्युश्च
क्लीबवेदवशाज्जडाः ।।101॥ ( श्री - वीरवर्धमान चारिते)
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जो पुरुष काम सेवन में अत्यन्त अन्ध (आसक्त) होते हैं, पर स्त्री, पुत्री आदि में लम्पट हैं, हस्तमैथुनादि अनङ्गक्रीडा में आसक्त रहते हैं, शील- रहित है, व्रत रहित है, नीच धर्म में संलग्न हैं, नीच है, और नीच मार्ग के प्रवर्तक हैं, ऐसे जड़ - जीव नपुंसक वेद के वश से नपुंसक होते हैं।
नरक आयु का आस्रवः
बारम्भपरिग्रहत्वं नारकास्यायुष: । (15)
As to the age karma the inflow of नरकायुकर्म hellish age karma is caused by too much wordly activity and by attachment to too many worldly objects or by too much attachment.
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