Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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यह दर्शन मोहनीय बन्ध की अपेक्षा एक होकर भी सत्ता कर्म के अपेक्षा तीन भेद को प्राप्त. होती है। अर्थात् बन्ध तो केवल मिथ्यात्व का ही होता है, परन्तु सम्यग्यदर्शन रूप घन की चोट लगने से उस मिथ्यात्व के तीन टुकडे हो जाते हैं। अतः सत्ता की अपेक्षा तीन और बंध की अपेक्षा एक भेद होने वाली दर्शन मोहनीय है। जिस कर्म के उदय से प्राणी सर्वज्ञप्रणीत मार्ग से पराङ्मुख, तत्त्वार्थ श्रद्धान से निरूत्सुक, हिताहित का विभाग करने में असमर्थ
और मिथ्यादृष्टि होता है, वह मिथ्यात्व है। शुभ परिणामों से जब उसका अनुभाग रोक दिया जाता है और जो उदासीन रूप से स्थित रहकर आत्म-श्रद्धान को नहीं रोकता है, वह सम्यक्त्व कहलाता है। उस सम्यक्त्व का वेदन करने वाला जीव सम्यक्-दृष्टि कहलाता है। वही मिथ्यात्व जब प्रक्षालनविशेष से क्षीणाक्षीण मदशक्ति वाले कोदों के समान आधा शुद्ध और आधा अशुद्ध रस वाला होता है तब वह मिश्र उभय या सम्यक्त्व मिथ्यात्व कहलाता है। जिसके उदय से
आत्मा के, आधे शुद्ध कोदों से जिस प्रकार का मद होता है, उसी तरह के मिश्र भाव होते हैं। चारित्र मोहनीय के दो भेद - कषाय और अकषाय के भेद से चारित्र मोहनीय दो प्रकार की है। अकषाय का अर्थ कषाय का निषेध नहीं है अर्थात् इसमें 'अ' का निषेध अर्थ में नहीं है, परन्तु 'ईषद्' अर्थ में 'न' समास है। अकषायवेदनीय के नौ भेद - हास्यादि के भेद से अकषायवेदनीय नौ प्रकार की हैं। (1) हास्य कर्म - जिसके उदय से हास्य का प्रादुर्भाव होता है वा हँसी आती है, हास्य कर्म है। (2) रतिनामकर्म - जिसके उदय से देशादि (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावादि) में उत्सुकता होती है, उनके प्रति अनुराग होता है वह रति नाम कर्म है। (3) अरति कषाय - जिसके उदय से देशादि में अनुत्सुकता होती है, उनमें प्रीति नहीं होती है वह अरति कषाय है। (4) शोक- जिसके उदय से शोचन होता है, वह शोक है। (5) भय - जिसके उदय से उद्वेग होता है, वा सात प्रकार का भय होता है, वह भय नोकषाय है। (6) जुगुप्सा - कुत्सा, ग्लानि को जुगुप्सा कहते हैं। यद्यपि जुगुप्सा कुत्सा
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