Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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एकीकृत स्वरूप जाति हैं। अर्थात् नरकगति, देवगति और मनुष्यगति में पंचेन्द्रिय जाति अव्यभिचारी है और शेष व्यभिचारी है। इस प्रकार चारों गतियों में अविरोधी सादृश्य भाव जाति इस नाम को प्राप्त होते हैं। जाति-व्यवहार में निमित्त जातिनाम कर्म हैं। वह जाति पाँच प्रकार की हैं। एकेन्द्रिय जाति-नाम कर्म, द्वीन्द्रिय जाति नाम कर्म, त्रीन्द्रिय जाति नाम कर्म, चतुरिन्द्रिय जाति नाम कर्म और पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म। जिस कर्म के उदय से आत्मा एकेन्द्रिय कहलाता है, वह एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म हैं। इस प्रकार दो इन्द्रिय जाति नाम कर्म के उदय से आत्मा दो इन्द्रिय कहलाता है, इत्यादि समझना चाहिये। (3) शरीरः- जिस कर्म के उदय से आत्मा के शरीर की रचना होती है, वह शरीर नाम कर्म हैं। वह शरीर पाँच प्रकार का है- औदारिक शरीर नाम कर्म, वैक्रियिक शरीर नाम कर्म, आहारक शरीर नाम कर्म, तैजस शरीर नाम कर्म और कार्मण शरीर नाम कर्म। (4) अंगोपांग नामकर्म:- जिसके उदय से अंगोपांग की रचना होती है वह अंगोपांग नाम कर्म है। जिस कर्म के निमित्त कारण से सिर, पीठ, जांघ, बाहु, उदर, नल, हाथ और पैर, इन आठ अंगो की तथा ललाट, नासिका, आँख, अँगुलि आदि उपाङ्गों की रचना होती हैं, उसे अंगोपांग नाम कर्म कहते हैं। वह अंगोपांग नामकर्म तीन प्रकार का है- औदारिक शरीराङ्गोपाङ्ग, वैक्रियिक शरीराङ्गोपांग और आहारक शरीराङ्गोपांङ्ग। औदारिक शरीर में जिसके निमित्त से अंगोपांगों की रचना होती है वह औदारिक शरीरांगोपांग है, इसी प्रकार वैक्रियिक शरीरांगोपांग और आहारक शरीरांगोपांग जानना चाहिये। (5) निर्माण:- जिसके निमित्त से शरीर में अंग और उपाङ्ग की निष्पत्ति (यथा स्थान और यथाप्रमाण रचना) होती है वह निर्माण नाम कर्म है। वह निर्माण कर्म दो प्रकार का है- स्वस्थान निर्माण और प्रमाण निर्माण। जिसके द्वारा रचना की जाय वह निर्माण कर्म है। वह निर्माण कर्म जाति नाम कर्म के उदय की अपेक्षा चक्षु आदि के स्थान और उनके प्रमाण की रचना करता है, वा जिसके द्वारा जाति नाम कर्म के अनुसार इन्द्रियों के आकार तद्-तद् स्थान
और शरीर प्रमाण उनकी रचना की जाती है वह निर्माण नाम कर्म है। (6) बन्ध:- शरीर नाम कर्म के उदय से ग्रहण किये गये पुद्गलों का परस्पर
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