Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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को मलधारण परीषहसहन कहते हैं। (19) सत्कार पुरस्कार परीषहजय -
___ मान और अपमान में तुल्य भाव होना, सत्कार-पुरस्कार की भावना नहीं होना, सत्कार पुरस्कार परीषहजय है। (20) प्रज्ञा परीषहविजय -
प्रज्ञा (बुद्धि) का विकास होने पर भी प्रज्ञा मद नहीं करना प्रज्ञा परीषह विजय है। 'मैं अंग पूर्व प्रकीर्णक आदि में विशारद हूँ, सारे ग्रन्थों के अर्थ का ज्ञाता हूँ, अनुत्तरवादी हूँ, त्रिकाल विषयार्थवेदी हूँ, शब्द (व्याकरण), न्याय, अध्यात्म में निपुण हूँ, मेरे समक्ष सूर्य के सामने खद्योत के समान अन्यवादी निस्तेज हो जाते हैं, इस प्रकार विज्ञान का मद नहीं होने देना प्रज्ञापरीषहजय है। (21) अज्ञान परीषहजय -
अज्ञान के कारण होने वाले अपमान एवं ज्ञान की अभिलाषा को सहन करना अज्ञान परिषहजय है। (22) अदर्शन परीषहसहन -
'दीक्षा लेना आदि अनर्थक है,' इस प्रकार मानसिक विचार नहीं होने देना, अदर्शन परीषह सहन है। संयम पालन करने में प्रधान, दुष्कर तप तपने वाले, परम वैराग्य भावना से शुद्ध हृदययुक्त, सकल तत्त्वार्थवेदी, अर्हदायतन, साधु और धर्म के प्रतिपूजक चिरप्रव्रजित मुझ तपस्वी का आज तक कोई ज्ञानातिशय उत्पन्न नहीं हुआ है। ‘महोपवासकरने वालों को प्रातिहार्यविशेष (चमत्कारी ऋद्धियाँ) उत्पन्न हुए थे' यह सब प्रलाप मात्र है, असत्य है, यह दीक्षा लेना व्यर्थ है, व्रतों का पालन निरर्थक है। इस प्रकार से चित्त में अश्रद्धा उत्पन्न नहीं होने देना, अपने सम्यग्दर्शन को दृढ़ रखना, अदर्शन परीषहसहन करना जानना चाहिये। तप के बल पर ऋद्धियों के उत्पन्न न होने पर जिन वचन पर अश्रद्धान नहीं करना अदर्शन परीषहजय है। इस प्रकार असंकल्पित (बिना संकल्प के) उपस्थित परीषहों को संक्लेश परिणामरहित सहन करने वाले साधु के रागादि परिणाम रुप आस्रव का अभाव होने से महानं संवर
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