Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार और उपस्थापना यह नव प्रकार का प्रायश्चित्त है। (1) आलोचना :- गुरु के निकट (समक्ष) दश दोषों को टालकर अपने प्रमाद का निवेदन करना आलोचना है। (2) प्रतिक्रमण :- 'मेरा दोष मिथ्या हो' गुरु से ऐसा निवेदन करके अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना प्रतिक्रमण है। . (3) तदुभय प्रायश्चित्त :- आलोचना और प्रतिक्रमण इन दोनों का संसर्ग होने पर दोषों का शोधन करना तदुभय प्रायश्चित है। (4) विवेक प्रायश्चित्त :- संसक्त हुए अन्न, पान और उपकरण आदि का विभाग करना विवेक प्रायश्चित्त है। (5) व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त :- कायोत्सर्ग आदि करना व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त है। (6) तप प्रायश्चित्त :- अनशन, अवमौदर्य आदि करना तप प्रायश्चित्त है। (7) छेद प्रायश्चित्त :- दिवस, पक्ष और महीना आदि की प्रवज्या (दीक्षा) छेद करना छेद प्रायश्चित्त है। (8) परिहार प्रायश्चित्त :- पक्ष, महीना आदि के विभाग से संघ से दूर रखकर त्याग करना परिहार प्रायश्चित्त है। (9) उपस्थापना प्रायश्चित्त :- पुन: दीक्षा का प्राप्त करना उपस्थापना प्रायश्चित्त
है।
विनय तप के 4 भेद
ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः। (23) विनय Reverence is of 4 kinds. 1. ज्ञान विनय For right knowledge. 2. दर्शन विनय For right belief. 3. चारित्र विनय For right conduct and 4. उपचार विनय By observing proper forms of respect, as folding the hands bowing etc. etc.
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