Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 667
________________ की दृष्टि से सिद्ध गति में सिद्धि होती है। भूतनय की अपेक्षा दो विकल्प हैं-एकान्तर गति और अनन्तर गति। अनन्त गति भूतनय की दृष्टि से मनुष्य गति में सिद्धि होती है और एकान्तर गति की अपेक्षा चारों गतियों में सिद्धि होती है अर्थात् किसी भी गति से मनुष्य होकर सिद्ध हो सकता है। (4) लिंग:- अवेद से मुक्ति होती है या तीनों वेदों से मुक्ति होती है? वर्तमान नय (प्रत्युत्पन्न नय) की अपेक्षा अवेद अवस्था में सिद्धि होती है और अतीत गोचर नय की (भूतनय) की अपेक्षा साधारण रूप से तीनों वेदों से सिद्धि होती है - तीनों लिंगों से सिद्धि भाववेद की अपेक्षा है, द्रव्यवेद की अपेक्षा नहीं क्योंकि द्रव्यवेद की अपेक्षा तो पुरुष लिंग से ही सिद्धि होती है, दूसरे वेद से नहीं। अथवा लिंग दो प्रकार का है-सग्रन्थ लिंग और निर्ग्रन्थ लिंग। उसमे प्रत्युत्पन्न नय की अपेक्षा निर्ग्रन्थ लिंग से ही मुक्ति होती है और भूतनय की अपेक्षा विकल्प है। (5) तीर्थ:- तीर्थसिद्धि दो प्रकार की होती है-एक तीर्थंकर रूप से और दूसरी तीर्थंकर भिन्न रूप से। कोई तीर्थंकर होकर सिद्ध हुए हैं और कोई तीर्थंकर न होकर सामान्य केवली होकर सिद्ध होते हैं। जो सामान्य सिद्ध हैं, तीर्थंकर बिना हुए सिद्ध हुए है वे दो प्रकार के हैं - उनमें कोई तो तीर्थंकरो के अस्तित्व (मौजूदगी) में सिद्ध होते हैं और कोई तीर्थंकर की गैरमौजूदगी में सिद्ध होते (6) चारित्र:- चारित्र अचारित्र के विकल्प से रहित अवस्था से या एक, चार, पाँच विकल्प वाले चारित्र से सिद्ध होते हैं- अर्थात् प्रत्युत्पन्न नय की दृष्टि से न तो चारित्र से सिद्धि होती है और न अचारित्र से सिद्धि होती है, चारित्र अचारित्र के विकल्प रहित निर्विकल्प भाव से सिद्धि होती है। भूतप्रज्ञापननय की अपेक्षा दो प्रकार है - अनन्तर और व्यवहित। अनन्तर भूतप्रज्ञापननय की दृष्टि से यथाख्यात चारित्र से सिद्धि होती है और व्यवधान भूतप्रज्ञापननय की अपेक्षा चार या पाँच चारित्रों से सिद्धि होती है। सामायिक छेदोपस्थापना, सूक्ष्म साम्पराय और यथाख्यात, इन चार चारित्रों को धारण कर सिद्ध होते हैं, और कोई सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात, इन पाँच चारित्रों को प्राप्त कर मुक्त होते हैं। मुक्त होने के पूर्व 652 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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