Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 668
________________ चार चारित्र तो अवश्य होते हैं, परिहारविशुद्धि संयम भजनीय है, किसी के होता है किसी के नहीं भी होता है। (7) प्रत्येक बुद्धः- स्वशक्ति और परोपदेश निमित्त ज्ञान के भेद से प्रत्येक बुद्ध और बोधित बुद्ध ये दो विकल्प होते हैं। कुछ प्रत्येक बुद्ध सिद्ध होते हैं जो परोपदेश के बिना स्वशक्ति से ही ज्ञानातिशय प्राप्त करते हैं, अर्थात् पूवभवोपार्जित कर्म संस्कार के कारण स्वयमेव संसार से विरक्त हो जाते हैं। (8) बोधित बुद्धः- जो परोपदेश पूर्वक ज्ञान प्राप्त करते हैं गुरुजनों के द्वारा सम्बोधित करने पर संसार से विरक्त हो मुक्ति प्राप्त करते हैं वे बोधित बुद्ध कहलाते हैं। (9) ज्ञान:- ज्ञान की अपेक्षा कोई एक ज्ञान से, कोई दो ज्ञान से, कोई तीन ज्ञान से, और कोई चार ज्ञान विशेष से सिद्धावस्था प्राप्त करते हैं। प्रत्युत्पन्न नय की अपेक्षा एक केवलज्ञान से ही सिद्धि होती है। भूतप्रज्ञापन नय की दृष्टि से मति, श्रुत, इन दोनों से मति श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों से व मति, श्रुत और मनः पर्यय इन तीनों ज्ञानों से तथा मति, श्रुत अवधि और मन: पर्यय इन चारों से सिद्धि होती है। (10) अवगाहन:- उत्कृष्ट और जघन्य के भेद से अवगाहन (शरीर की ऊँचाई) दो प्रकार का है। आत्म प्रदेशों का व्यापित्व अर्थात् अवगाहन शरीर परिमाण है और वह अवगाहन उत्कृष्ट एवं जघन्य के भेद से दो प्रकार का है। उत्कृष्ट अवगाहन पाँच सौ पच्चीस धनुष है और जघन्य साढ़े तीन अरत्नि (मुष्ठि बन्द किए हुए हाथ को अरनि कहते हैं) प्रमाण है। मध्य में अवगाहना के अनेक विकल्प होते हैं। भूतप्रज्ञापन नय की अपेक्षा उत्कृष्ट अवगाहना पाँच सौ पच्चीस धनुष है, जघन्य साढ़े तीन अरनि प्रमाण से और मध्य में अनेक विकल्पों से सिद्धि होती है तथा प्रत्युत्पन्न भाव प्रज्ञापन नय की दृष्टि से उत्कृष्ट कुछ कम पाँच सौ पच्चीस धनुष से जघन्य साढ़े तीन अरनि प्रमाण से और मध्य में अनेक विकल्पों से सिद्धि होती है तब प्रत्युत्पन्न भाव प्रज्ञापन नय की दृष्टि से उत्कृष्ट कुछ कम पाँच सौ पच्चीस धनुष से सिद्धि होती है और जघन्य से कुछ कम साढ़े तीन अरनि प्रमाण से सिद्धि होती है। 653 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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