Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 662
________________ उक्त चारों के कारणों के क्रम से चार दृष्टांत आविद्धकुलालचक्रवद्व्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च। 1. Like the potters wheel, 2. The gourd devoid of mud, 3. The shell of the castor seed and 4. The flame of the candle. घुमाये गये कुम्हार के चक्र के समान, लेपसे मुक्त हुई तूमड़ी के समान एरण्ड के बीज के समान और अग्नि की शिखा के समान। 1. घुमाये हुए चक्र के समान- अपवर्ग की प्राप्ति के लिये बहुत बार प्रणिधान होने से हाथ से घुमाये हुए चक्र के समान ऊर्ध्वगमन करता है। जैसे कुम्हार के प्रयोग से उसके हाथ का दण्ड से और दण्ड़ का चाक से संयोग होने पर चाक का भ्रमण होता है; परन्तु जब कुम्हार चाक पर दण्ड को घुमाना बन्द भी कर देता है तब भी पूर्वप्रयोग के कारण संस्कारक्षयपर्यन्त चक्र बराबर घूमता रहता है, उसी प्रकार संसारी आत्मा ने जो मोक्ष-प्राप्ति के लिये अनेक बार प्रणिधान और प्रत्यन किये हैं परन्तु अब मोक्ष-प्राप्ति के समय उद्योग के अभाव में भी उस संस्कार के आदेशपूर्वक पूर्वप्रयोग के कारण मुक्तात्मा का ऊर्ध्वगमन होता है। 2. मुक्त लेप वाली तूम्बड़ी के द्रव्य के समान- सङ्गरहित होने से मुक्त लेप वाली तूम्बड़ी द्रव्य के समान मुक्तात्मा का ऊर्ध्वगमन होता है। जैसे मिट्टी के लेप से वजनदार तूम्बड़ी पानी में डूब जाती है। और वही तूम्बड़ी ज्योंहि मिट्टी का लेप धुल जाता है तब शीघ्र ही पानी के ऊपर आ जाती है उसी प्रकार कर्मभार के आक्रान्त से वशी कृत आत्मा, कर्मवश संसार में इधर-उधर भ्रमण करती है। उसका अध: पतन होता है पर जैसे ही वह कर्मबन्धन से मुक्त होती है वैसे ही ऊपर आती है अर्थात् ऊर्ध्वगमन करती है। 3. एरण्ड के बीज के समान- बन्ध का उच्छेद हो जाने से एरण्ड के बीज के समान आत्मा ऊर्ध्वगमन करता है। जिस प्रकार ऊपर के छिलके के हटते 647 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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