Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
ही एरण्ड के बीज की गति दृष्टिगोचर होती है अर्थात छिलका हटते ही एरण्ड बीज ऊपर को ही जाता है उसी प्रकार मनुष्यादि भवों में भ्रमण कराने वाले गति नामकर्मादि सर्वकर्मों के बन्ध का छेद हो जाने से मुक्त जीव का स्वाभाविक ऊर्ध्व ही गमन होता है ।
4. स्वाभाविक ऊर्ध्वगमन - अथवा अग्नि की शिखा के समान, मुक्त जीव का स्वाभाविक ऊर्ध्वगमन ही है। जैसे- तिरछी बहने वाली वायु के अभाव में प्रदीपशिखा स्वभाव से ऊर्ध्वगमन करती है, उसी प्रकार मुक्तात्मा भी नाना गतिविकार के कारणभूत कर्म के हट जाने पर ऊर्ध्वगति स्वभाव से ऊपर को जाती है।
भगवती अराधना में कहा गया है
तं सो बंधणमुक्को उड्ढं जीवो पओगदो जादि । जह एरण्डयबीयं बंधणमुक्कं समुप्पददि ॥ (2121) इस प्रकार बन्धन से मुक्त हुआ वह जीव वेग से ऊपर को जाता है जैसे बन्धन से मुक्त हुआ एरण्ड का बीज ऊपर को जाता है।
समस्त कर्म नो कर्मरूप भार से मुक्त होने के कारण हल्का हो जाने से वह जीव ऊपर को जाता है। जैसे मिट्टी के लेप रहित तूम्बी जल में डूबने पर भी ऊपर ही जाती है ।
संग विजहणेण य लहुदयाए उड्ढं पयादि सो जीवो। जध आलाउ अलेओ उप्पददि जले णिबुड्डो वि ।। ( 2122 )
648
जैसे वेग से पूर्ण व्यक्ति ठहरना चाहते हुए भी नहीं ठहर पाता है वैसे ही ध्यान के प्रयोग से आत्मा ऊपर को जाता है।
Jain Education International
झाणेण य तह अप्पा पओगदो जेण जादि सो उड़ढं । वेगेण पूरिदो जह ठाइदुकामो वि य ण ठादि ।। (2123)
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org