Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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मरने के बाद जीव उस पूर्व पर्याय को धारण करके वापस नहीं आता है। वह यह भी नहीं जानता है कि जिसने पुण्य किया वह स्वर्ग आदि उत्तम गति में जाकर सुख भोग रहा है और यहाँ तक कि वह हम लोग को भूल करके भोग में मस्त हो गया होगा। यदि पाप किया होगा तो दुर्गति में जाकर कष्ट भोगता होगा उस कष्ट के कारण भी हमें भूल गया होगा-यदि भूला नही होगा तो भी दुःख करने से उन्हें किसी भी प्रकार का सुख नहीं पहुंच सकता है। केवल दुःख होने पर एवं आर्तध्यान करने पर पाप बन्ध होता है।
ज्ञानार्णव में इस ध्यान का वर्णन इस प्रकार किया है
राज्यैश्वर्यकलत्रबान्धवसुहृत्सौभाग्यभोगात्यये। चित्तप्रीतिकरप्रसन्नविषयप्रध्वंसभावेऽथवा। ससंत्रासभ्रमशोकमोहविवशैर्यत्खिद्यतेऽहर्निशं। तत्स्यादिष्टवियोगजं तनुभतां ध्यानं कलङ्कास्पदम्।।(29)
(पृ.246 स.25) - जो राज्य, ऐश्वर्य, स्त्री, कुटुंब, मित्र, सौभाग्य, भोगादि के नाश होने पर, तथा चित्र को प्रीति उत्पन्न करने वाले सुन्दर इन्द्रियों के विषयों का प्रध्वंसभाव होते हुऐ, संत्रास, पीड़ा, भ्रम, शोक, मोहके कारण निरन्तर खेदरूप होना सो जीवों के इष्ट वियोगजनित आर्तध्यान है, और यह ध्यान पाप का स्थान है। . दृष्टश्रुतानुभूतैस्तैः . पदार्थैश्चित्तरञ्जकैः।
वियोगे यन्मनः खिन्नं स्यादातं तद्वितीयकम् ॥(30)
देखे सुने अनुभवे मनको रंजायमान करने वाले पूर्वोक्त पदार्थो का वियोग होने से जो मनको खेद हो वह भी दूसरा आर्तध्यान है।
मनोज्ञवस्तुविध्वंसे पुनस्तत्संगमार्थिभिः। - क्लिश्यते यत्तदेतत्स्याद्वितीयातस्य लक्षणम्॥(31)
अपने मनकी प्यारी वस्तु का विध्वंस होने पर उसकी प्राप्ति के लिये जो क्लेश रूप होना सो दुसरे आर्तध्यान का लक्षण है।
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