Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 651
________________ या गंध कुटी का विर्सजन होता है - दिव्यध्वनि का भी (उपदेश देना) संकोच हो जाता है और केवली योग निरोध करते हैं। जो मुनिश्वर 6 महिना आयु शेष रहते केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं और उनके नाम गोत्र एवं वेदनीय कर्म की स्थिती अधिक होती है वे केवली समुद्घात भी करते हैं। अंत में "अ इ उ ऋ लृ ' इन पाँच लघु अक्षर के उच्चारण काल प्रमाण अयोगी गुणस्थान (14 वें ) में जीव रहता है। उपान्त ( द्विचरम, अंतिम समय के पहले । समय) समय में 72 प्रकृतियों का एवं अंतिम समय में 13 प्रकृतियों का नाश करके जीव सिद्ध, बुद्ध - नित्य निरंजन बन जाता है। गोम्मटसार में कहा भी है सीलेसिं संपत्तो, णिरूद्धणिस्सेसआसवो जीवो। कम्मरयविप्पमुक्को, गय जोगो केवली होदि 11 (65) जो अठारह हजार शील के भेदों का स्वामी हो चुका है और जिसके कर्मों के आने का द्वाररूप आस्त्रव सर्वथा बन्द हो गया है तथा सत्त्व और उदयरूप अवस्था को प्राप्त कर्मरूप रजकी सर्वथा निर्जरा होने से जो उस कर्म से सर्वथा मुक्त होने के सम्मुख है, उस योगरहित केवली को चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोग केवली कहते है । जो ज्ञानावरणादि अष्ट कर्मों से रहित है, अनन्तसुखरूपी अमृत के अनुभव करने वाले शान्तिमय है, नवीन कर्मबन्ध के कारणभूत मिथ्यादर्शनादि भावकर्मरूपी अञ्जन से रहित है, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, अव्याबाध, अवगाहन, सूक्ष्मत्व, अगुरुलघु, ये आठ मुख्य गुण जिनके प्रगट हो चुके हैं, कृतकृत्य हैं - जिनको कोई कार्य करना बाकी न रहा है, लोक के अग्रभाग में निवास करने वाले हैं, उनको सिद्ध कहते हैं। अट्ठविहकम्मवियला, सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा । अट्ठगुणा किदकिच्चा, लोयग्गणिवासिणो सिद्धा ।। ( 68 ) औपशमिकादिभव्यत्वानां च । (3) There is also non-existence of T or thought-activity due to the 636 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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