Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 647
________________ तेरहवें गुणस्थानकेवलणाणदिवायरकिरण-कलावप्पणासियण्णाणो। णवकेवललझुग्गम सुजणियपरमप्पववएसो॥(63) असहायणाणदंसणसहिओ इदि केवलि हु जोगेण। जुत्तोति सजोगजिण, अणाइणिहणारिसेउत्तो॥(64) जिसका केवल ज्ञान रूपी सूर्य की अविभाग प्रतिच्छेदरूप किरणों के समूह (उत्कृष्ट अनन्तानन्त प्रमाण) अज्ञान अन्धकार सर्वथा नष्ट हो गया हो और जिसको नव केवललब्धियों के (क्षायिक-सम्यक्त्व, चारित्र, ज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य) प्रकट होने से परमात्मा यह व्यपदेश (संज्ञा) प्राप्त हो गया है, वह इन्द्रिय आलोक आदिकी अपेक्षा न रखने वाले ज्ञानदर्शन से युक्त होने के कारण केवली और योग से युक्त रहने के कारण सयोग, तथा घाति कर्मों से रहित होने के कारण जिन कहा जाता है ऐसा अनादिनिधन आर्ष आगम में कहा है। ___बारहवें गुणस्थान का विनाश होते ही जिसके तीन घाति कर्म और अघाति कर्मों की 16 प्रकृति, इस तरह कुल मिलाकर 63 कर्म प्रकृतियों के नष्ट होने से अनन्तचतुष्टय-अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्ससुख और अनन्तवीर्य तथा नव केवललब्धि प्रकट हो चुकी हैं किन्तु साथ ही जो योग से भी युक्त है, उस अरिहन्त परमात्मा को तेरहवें गुणस्थानवर्ती कहते हैं। मोक्ष के कारण और लक्षण . . बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः। (2) मोक्ष Liberation (is) the freedom from all Karmic matter, owing to the non-existence of the cause of bondage and to the shedding (of all the Karmas). बन्ध हेतुओं के अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है। मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग रूप बंध के कारणों 632 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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