Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 622
________________ द्वारा चोरी से हरण किये गये दूसरो के धन के विषय में आदर या उत्सुकता होती है उसे तत्त्वज्ञ जन चोरी से उत्पन्न होने वाला (चौर्यानन्द) रौद्रध्यान कहते हैं। वह अतिशय निन्दा का कारण है। कृत्वा सहायं वरवीरसैन्यं तथाभ्युपायांश्च बहुप्रकारान् । धनान्यलभ्यानि चिरार्जितानि सद्यो हरिष्यामि जनस्य धात्र्याम् ॥ (24) द्विपदचतुष्पदसारं धनधान्यवराङ्गनासमाकीर्णम् । वस्तु परकीयमपि मे स्वाधीनं चौर्यसामर्थ्यात् ॥ (25) इत्थं चुरायां विविधप्रकारः शरीरिभिर्यः क्रियतेऽभिलाषः । अपारदुःखार्णवहेतुभूतं रौद्रं तृतीयं तदिह प्रणीतम् ॥ (26) दीर्घकाल से कमाया हुआ जो लोगों का धन पृथिवी पर सरलता से नहीं प्राप्त किया जा सकता है उसको मैं उत्कृष्ट योद्धाओं की सेना की सहायता से अनेक प्रकार के उपायों को करके शीघ्र ही ग्रहण करूँगा । दुपद और चतुष्पदों में उत्कृष्ट तथा धन, धान्य एवं उत्तम स्त्रियों से व्याप्त जो भी दूसरों की वस्तु है, वह चोरी के बल से मेरे स्वाधीन है - मैं उसे सरलता से प्राप्त कर सकता हूँ । इस प्रकार से प्राणी जो चोरी के विषय में अनेक प्रकार की इच्छा किया करते हैं उसे यहां तीसरा रौद्रध्यान कहा गया है और वह अपरिमित दुखरूप समुद्र का कारणभूत है । (4) विषयसंरक्षणानंद- लोभ कषाय के तीव्र उदय से तथा तीव्र परिग्रह - संज्ञा के कारण जीव चेतन-अचेतन रूप परिग्रह का संचय करने के लिए जो बार - बार चिन्तवन करता है उसे विषय - संरक्षणानंद (परिग्रह संरक्षणानंद) रौद्रध्यान कहते हैं। पिण्याकगंधक, श्वश्रुनवनीत, आदि व्यक्ति विषयसंरक्षणानंद में प्रसिद्ध हो गये हैं। इस ध्यान के कारण जीव धन सम्पत्तियों के लिए चोरी करते हैं, डाका डालते हैं, व्यापार में मिलावट करते हैं, विक्रयकर एवं आयकर की चोरी करते हैं । इस ध्यान के कारण दूसरों का शोषण भी करते हैं, इससे एक व्यक्ति धन्नासेठ, पूँजीपति, मालिक बन जाता है, जिससे समाज में आर्थिक विषमता फैलती है जिससे धनी, गरीब मालिक, मजदूर शोषक-शोषित आदि विषम वर्गों का सूत्रपात होता है जिससे देश में राष्ट्र में अशांति विपल्व, युद्ध, हड़ताल आदि होते है । Jain Education International For Personal & Private Use Only 607 www.jainelibrary.org

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