Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan

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Page 627
________________ 'केवली' यह शब्द सामान्य है, अतः इस केवली शब्द से अचित्य विभूति रूप केवलज्ञान साम्राज्य का अनुभव करने वाले संयोग केवली और अयोगकेवली इन दोनों का ग्रहण करना चाहिये। इससे यह फलितार्थ हुआ कि उपशांतमोही के पृथक्त्व वितर्क शुक्ल ध्यान, क्षीणमोही (बारहवें गुणस्थान) के एकत्ववितर्क शुक्ल ध्यान, संयोगकेवली के सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती और अयोग केवली के व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान होता है। अतः अन्तिम दो शुक्ल ध्यान केवली के होते हैं, छहस्थों के नहीं । शुक्ल ध्यान के चार भेदों के नाम पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि । ( 39 ) The 4 kinds of शुक्लध्यान pure concentration are: 1) पृथकत्त्व वितर्क विचार Absorption in meditation of the self but unconsciously alluling its different attributes to replace one another. 2) एकत्व वितर्क विचार Absarption is one aspect of the self without changing the particular aspect concentrated upon. 3) सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति The very fine vibratory movements in the soul even when it is deeply absarbed in it self in a kevali. 4) व्युपरतक्रिय निवर्ति Total absarpation of the soulin it self steady and undisturbably fixed without any motion ar vibration what so ever. पृथक्त्व वितर्क, एकत्त्व वितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रिया निवर्ति चार शुक्ल ध्यान है। पृथक्त्वशुक्लध्यान का लक्षण द्रव्याण्यनेकभेदानि शान्तमोहस्ततो 612 योगैर्ध्यायति ह्येतत्पृथक्वमिति शान्तमोह अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थानवर्ती जीव, तीन योगों के द्वारा अनेक भेदों से युक्त द्रव्यों का जो ध्यान करता है वह पृथक्त्व नाम का शुक्ल ध्यान कहा गया है। Jain Education International यत्त्रिभिः । कीर्तितम् ।। ( 45 ) ( तत्वार्थसार पृ. 186 ) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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