Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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इस बात की सूचना करने के लिये 'चिन्तानिरोध' ध्यान का विशेषण किया गया है। चिन्ता ज्ञान की पर्याय हैं। उस ज्ञान की व्यग्रता हट जाना ही ध्यान है।
मूहूर्त वचन आहारादि की व्यावृत्ति के लिये है। आहारादि का भाव आ जाने पर चित्तवृत्ति ध्यान से च्युत हो जाती है अत: उस आहारादि काल की निवृत्ति के लिए मुहूर्त शब्द कहा गया है। अथवा, ध्यान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसके बाद एक ही ध्यान लगातार नहीं रह सकता।
चिन्तानिरोध तुच्छ अभाव (सर्वथाभाव) रूप नहीं है किन्तु किसी पर्याय की अपेक्षा भावान्तर रूप इष्ट है। अन्य चिन्ताओं के अभाव की अपेक्षा ध्यान असत् होकर भी विवक्षित लक्ष्य के सद्भाव की अपेक्षा सत् स्वरूप है। अर्थात् विवक्षित अर्थ के विषय अवगम स्वभाव की सामर्थ्य की अपेक्षा ध्यान अस्ति रूप है।
ध्यान के भेद
आरौिद्रधर्म्यशुक्लानि। (28) It if of 4 kinds: 1. आर्तध्यान Painful or meditation, monomania. 2. रौद्रध्यान Wicked concentration on unrighteous gain etc. 3. धर्मध्यान Righteous concentration. 4. TCPMEZINA Pure concentration i.e. concentration on the soul.
आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल से ध्यान के चार भेद हैं। 1. आर्तध्यान- ऋतु, दुःख और अर्दन को आर्ति कहते हैं और आर्ति से होने वाला ध्यान आर्तध्यान है। 2. रौद्रध्यान- रुलाने वाले को रुद्र या क्रूर कहते हैं, उस रुद्र का कर्म या भाव रौद्रध्यान कहलाता है। 3. धर्म्यध्यान- धर्म से युक्त ध्यान धर्म्यध्यान कहलाता है। 4. शुक्लध्यान- शुचि गुण के योग से शुक्ल होता है। जैसे- मैल हट जाने से शुचि गुण के योग से वस्त्र शुक्ल कहलाता है, अर्थात् वस्त्र शुचि होकर
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