Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
कर्मोदय रुप द्रव्य परीषहों का सद्भाव देखकर ग्यारह परीषहों को केवली भगवान में उपचार कर लिया जाता है।
बादरसांपराये सर्वे । ( 12 )
All the afflictions arise in the case of the ascetic with gross passions. बादर साम्पराय में सब परीषह सम्भव हैं ।
यहाँ बादरसाम्पराय कहने से गुणस्थानविशेष (नवम) गुणस्थान (मात्र) का ग्रहण नहीं है अपितु अर्थ निर्देश है कि प्रमत्तादि संयतों का सामान्य ग्रहण है। बादर (स्थूल) साम्पराय ( कषाय) जिनके हैं वे बादर साम्पराय है ।
निमित्त विशेष का सद्भाव होने से सर्व परीषहों का बादर साम्पराय में सद्भाव पाया जाता है क्षुधादि परीषह में ज्ञानावरणादि कर्मों का उदय निमित्तविशेष है। उन ज्ञानावरणादि मारे निमित्तों का सद्भाव रहने पर बादरसाम्पराय अर्थात् प्रमत्तसंयत से लेकर नवम गुणस्थान तक के साधुओं के क्षुधा आदि सभी परीषह होती है।
प्रश्न – किस-किस चारित्र में सर्व परीषहों की संभावना है ?
-
उत्तर – सामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धि, इन तीन चारित्रों में क्षुधादि सर्व परीषों की संभावना है, अर्थात् इनके सर्व परीषह होती हैं ।
ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने । (13)
प्रज्ञा Conceit and ; अज्ञान Lack of knowledge, sufferings are caused by the operation of ज्ञानावरणीय, knowledge-obscuring karmas.
ज्ञानावरण के सद्भाव में प्रज्ञा और अज्ञान परीषह होती हैं, प्रज्ञा क्षायोपशमिकी है, अर्थात् ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होती है, अन्य ज्ञानावरण के उदय के सद्भाव में प्रज्ञा का सद्भाव है अतः क्षायोपशमिकी प्रज्ञा अन्य ज्ञानावरण के उदय में मद उत्पन्न करती है, सर्व ज्ञानावरण कर्म का क्षय हो जाने पर मद नहीं होता । अतः प्रज्ञा और अज्ञान परीषह ज्ञानावरण कर्म के उदय से उत्पन्न होती हैं अर्थात् इन दोनों परिषहों की उत्पत्ति में ज्ञानावरण कर्म का उदय ही कारण है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
571
www.jainelibrary.org