Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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Curbing activity well is control.
nigrahaover mind मन, speech वचन and body काय ।
गुप्ति का लक्षण सम्यग्योगनिग्रहो गुप्ति: । (4)
योगों का सम्यग् प्रकार निग्रह करना गुप्ति है ।
उस मन-वचन, काय को यथेच्छ विचरण से रोका जाता है, उसको निग्रह कहा जाता है। मन, वचन - काय रूप योग का निग्रह योगनिग्रह कहा जाता
है।
Prevention is proper control
इसका 'सम्यग् ' यह विशेषण सत्कार, लोकपंक्ति आदि आकांक्षाओं की निवृत्ति के लिये है। पूजा पुरस्सर क्रिया सत्कार कहलाती है, 'यह संयत महान् है' ऐसी लोकप्रसिद्धि लोकपंक्ति है । इस प्रकार और भी इहलौकिक फल की आकांक्षा आदि का उद्देश्य न लेकर तथा पारलौकिक सुख की आकांक्षा न करके किया गया योग का निग्रह गुप्ति कहलाता है। उसका ज्ञान कराने के लिये सम्यग् विशेषण दिया गया है।
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इसलिये कायादि के निरोध होने से तद् निमित्तक कर्मों के रूप जाने गुप्ति आदि में संवर की प्रसिद्धि है ही अर्थात् सम्यग्विशेषण विशिष्ट, संक्लेश परिणामों के प्रादुर्भाव से रहित कायादियोगों का सम्यक् प्रकार निरोध हो जाने पर काय -वचन-मन रूप योग के निमित्त से होने वाले, आने वाले कर्मों का आम्रव रूक जाना ही संवर है, कर्मों का रूक जाना ही संवर है, ऐसा जानना चाहिये। गुप्ति तीन प्रकार की है- मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति | इसमें अयत्नाचारी के बिना देखे, बिना शोधे भूमि प्रदेश पर घूमना, दूसरी वस्तु रखना, उठाना, शयन करना, बैठना आदि शारीरिक क्रियाओं के निमित्त से जो कर्म आते हैं, वा कायिक निमित्त जिन कर्मों का अर्जन होता है, उन कर्मों का आम्रव काययोग का निग्रह करने वाले अप्रमत्त गुणस्थानवर्ती संयमी के नहीं होता। इसी प्रकार वाचनिक असंवरी - संवररहित असत् प्रलापी जीव के अप्रिय वचनादि का हेतुक (अप्रिय वचन बोलने आदि से) जो वाचनिक व्यापार निमित्तक कर्म आते हैं, वचनों का विग्रह करने वाले वचनयोगी के
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