Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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आत्मा व शरीर के विवेक (भेद) से पैदा हुए आनन्द से परिपूर्ण (युक्त) योगी, तपस्या के द्वारा भयंकर उपसर्गों व घोर परीषहों को भोगते हुए भी खेद-खिन्न नहीं होते हैं। एक कवि ने कहा भी है
• पृष्ठं घृष्ठं पुनरपिपुनः चन्दनं चारू गन्धम्।
छिन्नं-छिन्नं पुनरपिपुनः स्वाद चैव इक्षुदण्डम्। दग्धं-दग्धं पुनरपिपुन: कंचनं कान्तवर्णम्।
न प्राणान्ते प्रकृतिविकृतिर्जायते चोक्तमानाम्।
चन्दन को जितना घर्षण किया जाता है उतना ही चन्दन अधिक सुगन्ध प्रदान करता है। गन्ना को जितना पेला जाता है उतना ही स्वादभरित रस प्रदान करता है। सुवर्ण को जितना दग्ध (जलाया) किया जाता है उतना सुवर्ण कांत-कमनीय होकर प्रवाशमान हो जाता है. उसी प्रकार साधु-सज्जन धर्मात्मा व्यक्ति जितना ही उपसर्ग, कष्ट, ताड़न, मारन, गाली-गलौज रूपी अम्नि से सन्तप्त होता है वह उतना ही शुद्ध, निर्मल, पवित्र होकर आध्यात्मिक ज्योति से चमक उठता है। उसका प्राणान्त होने पर भी प्राण से भी प्रिय, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ धर्म को त्याग नहीं करता है। वह प्रिय धर्मी एवं दृढ़ धर्मी होता है।
. बाईस परिषह क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशव
धयाचनालाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि। (७) The 22 परिषहा : sufferings are:
1. क्षुत् Hunger 2. पिपासा Thirst. 3. शीत Cold. .. 4. उष्ण Heat. 5. दंशमशक Insect bites, Mosquitoes etc. 6. JIRI Nakedness. 7...37fà Ennui, dissatisfaction, languor. 8. Fit Women.
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