Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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इस प्रकार संसार के दुःख का मूल कारण शरीर में आत्मा को समझ लेना है। इसलिये इस मिथ्या मान्यता को छोड़कर बाहर की बातों में अपनी इन्द्रियों का व्यापार- कार्य रोककर अपने आत्मा में प्रवेश करनी चाहिए ।
मत्तश्च्युत्वेन्द्रियद्वारैः पतितो विषयेष्वहम् । तान्प्रपद्यामिति मां पुरा वेद न तत्त्वत: । ( 16 )
अपने आत्म-स्वरूप से छुटकर मैं पाँचों इन्द्रियों के विषय भोगों में पाँचों इन्द्रियों द्वारा गिर गया फँस गया उन इन्द्रियों के विषयों को पाकर मैं पहले - अनादिकाल से अपने-आपको मैं चेतन आत्मा हूँ, इस प्रकार वास्तव
में नहीं समझा।
एवं
एष
बहिर्वाचं त्यजेदन्तरशेषतः । समासेन प्रदीपः परमात्मन: । ( 17 )
इस प्रकार सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा बाहरी बातों को छोड़ कर पूरी तरह से अन्तरङ्गवाणी को भी छोड़ देवें । यह अन्तरत्र बहिरङ्ग वचनालाप का त्याग संक्षेप में इन्द्रियों की विषयों में प्रवृत्ति को रोकने वाला योग परमात्मा के स्वरूप का प्रकाशक दीपक है।
त्यक्त्वा
अनादि काल से जिन भावना को भाता हुआ यह जीव संसार में परिभ्रमण करता हुआ अनन्त दुःखों को प्राप्त कर रहा है, मुमुक्षु को उन भवनों को त्याग कर विपरीत भावना को करनी चाहिए। गुणभद्र स्वामी ने कहा भी है
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योगः
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आ पृ.222
मैनें संसार स्वरूप भंवर में पड़कर पहले कभी जिन सम्यग्दर्शनादि भावनाओं का चिन्तन नहीं किया हैं उनका अब चिन्तवन करता हूँ और जिन मिथ्यादर्शनादि भावनाओं का बार बार चिन्तवन कर चुका हूँ उनका अब मैं चिन्तन नहीं करता हूँ। इस प्रकार मैं अब पूर्वभावित भावनाओं को छोड़कर उन अपूर्व भावनाओं को भाता हूँ, क्योंकि इस प्रकार की भावनायें संसार विनाश का कारण होती हैं। सत् स्वरूप की भावना, स्व स्वरूप की भावना अनादि काल
भावयामि भवावर्ते भावनाः प्रागभाविताः । भावये भाविता नेति भवाभावाय भावना | (238)
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