Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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धन सब अनर्थों का मूल है। उसमें श्रम, दुःख, वैर, भय, शोक, कलह, राग, द्वेष और मोह इन अशुभों का प्रसंग होता ही है।
दुग्गमदुल्लहलाभा भयपउरा अप्पकालिया लहुया।
कामा दुक्खविवागा असुहा सेविज्जमाणा वि॥(724)
जो दुःख से और कठिनता से मिलते हैं, भय प्रचुर हैं, अल्पकाल टिकनेवाले हैं, तुच्छ हैं जिनका परिणाम दुःखरूप है, ऐसे ये इन्द्रिय-विषय सेवन करते समय में भी अशुभ ही हैं।
असुइविलिविले गब्भे वसमाणो वत्थिपडलपच्छण्णो। मादूइसिभ लालाइयं तु तिव्वासुहं पिबदि॥(725)
अशुचि से व्याप्त गर्भ में रहता हुआ यह जीव जरायु पटल से ढका हुआ है। वहाँ पर माता के कफ और लार से युक्त अतीव अशुभ को पीता है।
मंसट्ठिसिंभवसरुहिरचम्मपित्तं तमुत्तकुणिपकुडिं। बहुदुक्खरोगभायण सरीरमसुभं वियाणाहि ॥(726)
मांस, अस्थि, कफ, वसा, रुधिर, चर्म, पित्त, आंत, मूत्र इन अपवित्र पदार्थों की झोंपड़ी बहुत प्रकार के दुःख और रोगों के स्थान स्वरूप इस शरीर को अशुभ ही जानो।
अत्थं कामसरीरादियं पि सव्वमसुभत्ति णादूण। णिविज्जंतो झायसु जह जहसि कलेवरं असुइं॥(727)
अर्थ, काम और शरीर आदि ये सभी अशुभ हैं ऐसा जानकर विरक्त होते हुए जैसे अशुचि शरीर छूट जाए वैसा ही ध्यान करो।
मोत्तूण. जिणक्खादं धम्मं सुहमिह दु णत्थि लोगम्मि।
ससुरासुरेसु तिरिएसु णिरयमणुएसु चिंतेज्जो॥(728)
जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित धर्म को छोड़कर सुर-असुर, तिर्यंच, नरक और मनुष्य से सहित इस जगत् में कुछ भी शुभ नहीं है। ___अन्यत्र तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों में अशुचि अनुप्रेक्षा ऐसा नाम है, किन्तु
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