Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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उन कर्मों का आस्त्रव नहीं होता। जो रागद्वेषादि से अभिभूत प्राणी के अतीत, अनागत विषयाभिलाषा आदि से मनोव्यापार निमित्तक कर्म आते हैं, वे कर्म मनोनिग्रही के नहीं आते, अतः योगनिग्रह (योग का निरोध) हो जाने पर तत्सम्बन्धी कर्म कभी नहीं आते अर्थात् उन कर्मों का संवर हो जाता है। अतः योगनिग्रही के संवर सिद्ध है।
समिति के भेद
ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितय: । (5)
Walking, speech, eating, lifting and laying down and depositing waste products constitute the fivefold regulation of activities. समिति - Carefulness in to take. सम्यक्र्यासमिति - Proper care in walking. सम्यक भाषासमिति - Proper care in speaking. सम्यक् एषणासमिति - Proper care in eating. सम्यक्आदाननिक्षेप समिति
सम्यक् उत्सर्ग समिति - Proper care in excreting.
ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप और उत्सर्ग ये पाँच समितियाँ हैं।
(1) ईर्यासमिति
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Proper care in lifting and laying.
फासुयमग्गेण दिवा जुंगतरप्पेहिणा जंतूणि परिहरंतेणिरियासमिदी
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हवे
सकज्जेण ।
प्रयोजन के निमित्त चार हाथ आगे जमीन देखनेवाले साधु के द्वारा दिवस में जीवों की रक्षाकरते हुये गमन करना ईर्या समिति है । -
गणं ॥ ( 11 )
मूलाचार भाग-1
'प्रगता असवो यस्मिन्’– निकल गये हैं प्राणी जिसमें से उसे प्रासुक कहते हैं। ऐसा प्रासुक - निरवद्य मार्ग है । उस प्रासुक मार्ग से अर्थात् हाथी, गधा, ऊँट, गाय, भैंस और मनुष्यों के समुदाय के गमन से उपमर्दित हुआ जो मार्ग है उस मार्ग से दिवस में सूर्य के उदित हो जाने पर, चक्षु से वस्तु स्पष्ट दिखने पर चार हाथ आगे जमीन को देखते हुए अर्थात् अच्छी
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