Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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को प्राप्त नहीं करता है तब तक कर्म बन्ध होते रहते हैं।
योग विशेषात्' इस शब्द से यह निर्देश किया गया कि मन, वचन काय के परिस्पन्दन से जो आत्म प्रदेश में परिस्पन्दन होता है उससे कर्मास्रव होता है। 'सूक्ष्म' शब्द से यह निर्देश किया गया है कि कर्मयोग पुद्गल सूक्ष्म होते हैं स्थूल नहीं होते हैं।
एक क्षेत्रावगाहों से सिद्ध होता है कि आत्मप्रदेश और कर्म पुद्गल वर्गणाओं का अवकाश एक ही क्षेत्र में होता है भिन्न-भिन्न क्षेत्र में नहीं। 'स्थिति शब्द से निर्देश किया गया है कि स्थिर कर्म परमाणु ही कर्म रूप परिणमन करते हैं। अस्थिर (चलते हुए, गमन करते हुए) कर्म परमाणु कर्म रूप पर्याय में परिणमन नहीं करते हैं। 'सर्व आत्म प्रदेशेषु' विशेषण से यह कहा गया कि आत्मा के एक दो आदि प्रदेशों में कर्म वर्गणाएँ नहीं बंधती है। परन्तु आत्मा के सम्पूर्ण असंख्यात प्रदेशों में कर्म वर्गणाएँ बंधकर स्थित रहती हैं। "अनंतानंत प्रदेशः" शब्द से यह सिद्ध किया गया कि कर्म परमाणु अनंतानंत हो एक साथ बंधते हैं।
ये न तो संख्यात हैं न असंख्यात. हैं और न अनन्त हैं, अपितु अनंतानंत है, इसका प्रतिपादन करने के लिए 'अनन्तानंत' शब्द का ग्रहण है। एक समय में आत्मा के साथ सम्बन्ध को प्राप्त करने वाले ये पुद्गल स्कन्ध अभव्यों से अनन्त गुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। वे घनाङ्गुल के असंख्येय भाग रूप क्षेत्रावगाही एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात समय की स्थिति वाली पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और चार स्पर्श वाली तथा आठ प्रकार के कर्म रूप से परिणमन करने योग्य पुद्गल वर्गणायें आत्मा के द्वारा योगों के कारण आत्मसात् की जाती हैं वह प्रदेश बन्ध हैं। गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड में कहा भी है :
एयक्खेत्तोगाढं सव्वपदेसेहिं कम्मणो जोग्गं। . बंधदि सगहेदूहि य अणादियं सादियं उभयं॥18॥
गोंमट्टसार कर्मकाण्ड जघन्य अवगाहना रूप एक क्षेत्र में स्थित और कर्म रूप परिणमन के योग्य आदि अथवा सादि अथवा दोनों स्वरूप जो पुद्गल द्रव्य है, उसको
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