Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
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पुण्य प्रकृतियाँ
सद्वेद्यशुभायुनामगोत्राणि पुण्यम्। (25) you or meritorious karmas are the following 1. सोद्वेद्य Pleasure bearing. 2. शुभायु Good age karma. 3. शुभनाम Good body-making karma. 4. शुभगोत्र High-family determining. __साता वेदनीय, शुभआयु, शुभनाम और शुभगोत्र ये प्रकृत्तियाँ पुण्यरूप
शुभ का ग्रहण आयु आदि का विशेषण है। शुभ प्रशस्त ये एकार्थवाची हैं। उस शुभ का ग्रहण आयु आदि का विशेषण है। शुभ आयु, शुभ नाम, शुभ गोत्र ये पुण्यप्रकृत्तियाँ हैं। शुभ आयु तीन प्रकार की हैं- तिर्यगायु, मनुष्यायु और देवायु। यद्यपि तिर्यंञ्च गति अशुभ है परन्तु तिर्यञ्चायु शुभ है क्योंकि तिर्यञ्च गति में जाना कोई नही चाहता है अतः ‘आयु' पुण्यप्रकृति और तिर्यञ्च गति' पाप प्रकृति है। सैंतीस नाम प्रकृत्तियाँ शुभ हैं। मनुष्यगति, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक
आदि पाँच शरीर, तीन अंगोपांग, समचतुरस्र-संस्थान, वज्रवृषभनाराच संहनन, प्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरूलघु, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्ति, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति, निर्माण और तीर्थंकर नाम ये सैंतीस नामकर्म की प्रकृतियाँ शुभ हैं। उच्च गोत्र और साता वेदनीय मिलकर ये सर्व बयालीस प्रकृतियाँ शुभ हैं, या पुण्य प्रकृतियाँ हैं।
पाप प्रकृतियाँ
___ अतोऽन्यत्पापम्। (26) The karmas other than these are 914 papa or demeritarious karmas.
इनके सिवा शेष सब प्रकृतियाँ पापरूप है। पुण्य नामक कर्म प्रकृति के समूह से अन्य प्रकृतियाँ पाप प्रकृतियाँ कहलाती है, वे 82 हैं। पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, 26 मोहनीय की, अन्तराय की
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